प्रेम मे डुबी दो रुहएं
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प्रेम मे डुबी दो रुहएं
अबोध शिशु के समान होती है,,
पहचानती है
बस स्नेह की भाषा,,,
पलटती है
केवल लाड़ की लिपि पर,,,
सूंघ लेती है
गंध पवित्र भावनाओं की,,,,
मचलती है सुन कर
प्रेमी की आवाज,,,
ईश्वर स्वयं बचाते हैं
प्रतिपल नासमझो को
प्रेम मे डूबी दो रुहएं
ईश्वर की गोद मे खेलती है.