पिता

पितु,पोषक सद्ज्ञान •ठाँव है।
नवजीवन-उत्थान ••पाँव है।
जगत्-सिंधु के पास आप,तब।
बोध-सूर्य की धूपछाँव है।
पितु दुलार है,सफल प्यार है।
खुशियों की पोषक बयार है।
संस्कारों की दिव्य रोशनी,
औ शुभ संस्कृति बेशुमार है।
पिता खेल है और मेल है।
लाए खिलौनामयी रेल है।
जीवन के उत्थान-पतन में,
साथ खड़ा, तू कहाँ फेल है?
——————————
• ठाँव=ठिकाना
••पाँव=आधार
——————————
पं बृजेश कुमार नायक
झाँसी