पापा ! आप कहाँ हो ? ( एक पुत्री का पत्र पिता के नाम कविता के रूप में )
जबसे आप गए हो ,
अपने चमन से .
मैं भी जी ना सकी ,
आप के बिन अमन से .
याद करती है आपको आपके डाल की
नन्ही कलि ,
पापा ! आप कहाँ हो ?
समय बदला ,मौसम बदले,
आपके चमन को भी बदलना पड़ा .
वक़्त की रफ़्तार बढ़ी तो ,
आपके फूलों को भी बदलना पडा .
मगर वक़्त के साथ मैं ना बदल सकी ,
ढूंढती हूँ अब भी मैं आपको यहाँ-वहां …
पापा ! आप कहाँ हो ?
एक ही डाल के फूलों का अंदाज़ जुदा रहा ,
आपको सब ज्ञात था.
मगर सब का भाग्य भी रहा जुदा-जुदा ,
क्या इसका अनुमान आपको था ?
उनको मिली जीवन में अपूर्व सफलता ,
मगर आपकी लाडली को ….!!
पापा ! आप कहाँ हो ?
पापा ! आप क्या गए मुझसे दूर ,
मेरी तो तकदीर ही बदल गयी .
आपके स्नेह ,आपकी देखभाल को ,
आपके लाड-प्यार को एक मासूम कलि तरस गयी .
पापा ! आप कहाँ हो ?
आप होते गर साथ मेरे ,
तो जिंदगी इतनी कठिन ना होती .
अपनी मनचाही मंजिल को पा लेती मैं,
आपके सहयोग और प्रेरणा की शक्ति मिली होती.
जब भी होती हूँ तन्हा ,यह कमी महसूस करती हूँ.
पापा ! आप कहाँ हो ?
पहले तो आते थे सपनो में मेरे ,
अब क्यों नहीं आते ?
” मैं दूर नहीं तुझसे मेरी लाडली ”
आकर अब क्यों नहीं कहते ?
पोंछने पड़ते हैं खुद ही अपने आंसू ,
मेरे आंसू पोंछने वाले आप ,
पापा ! कहाँ हो?
हज़ार खुशियाँ हो जीवन में मगर आपकी कमी
तो सदा रहेगी ही .
कहा करते थे कभी हम पाँचों उंगलियाँ हाथ की हो जैसे
सदा साथ रहेंगे ही .
फिर क्यों हमसे दूर चले गए ?
क्यों नहीं निभाया अपना वायदा ?
हाथ से जुदा हुआ अंगूठा बहुत खलता है पापा !
आप कहाँ हो ?
माना की आप लौट के नहीं आ सकते ,
हमसे बहुत दूर ,बहुत दूर जो चले गए हो.
मगर जहाँ भी हो सलामत रहो ,
ईश्वर सदा आपको अपने साथ रखे ,
दूर से सही चाहे ,अपना आशीष और स्नेह हम पर बरसाए रखना ,
महसूस करेंगे सदा आपको हम अपने दिल के पास ही ,
पापा ! आप जहाँ भी हो.