न थक कर बैठते तुम तो, ये पूरा रास्ता होता।

गज़ल
1222……1222……1222……1222
न थक कर बैठते तुम तो, ये पूरा रास्ता होता।
तुम्हें मंजिल भी मिल जाती, अगर चे हौसला होता।
नज़र से बात होने से, कहां वो बात आती है,
तुम्हारा प्यार भी होता, अगर दिल भी मिला होता।
कहां ये चांदनी होती, न होते इसके चर्चे भी,
न चंदा ने भी सूरज से, उजाला ये लिया होता।
जरूरत थी नहीं तुमको, न मंदिर की न मस्जिद की,
अगर मां बाप को दर्जा, भी ईश्वर का दिया होता।
अगर हम साथ होते तो, हमें मंजिल भी मिल जाती,
न हमको ही गिला होता, न तुमको ही गिला होता।
कहां होते ये बादल भी, न बारिस का महीना ही,
अगर ये भाप बनकर जल, न दरिया से उड़ा होता।
के ‘प्रेमी’ चाहते दुनियां, बने गुलजार गुलशन इक,
गले सबको लगाते प्यार से, तो बन गया होता।
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी