नौकरी
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जहांँ आजाद उड़ता पंछी था,
जी रहा था अपने घर में,
आ गया हूँ करने नौकरी,
गुलामो के शहर में ।
ख्वाहिशें की बहुत थी,
करना है अब नौकरी,
बंदिशे चुन लिया है,
बड़े-बड़े महकमें में।
खुशियाँ खूब जताता हूँ,
खूब करूँगा नौकरी,
समय के पाबन्दी में बिक गई,
एक मुस्कान रह गई जिन्दगी।
झोली भरने चलें थे अपनी,
समर्पण से करके नौकरी,
जिन्दगी खुद की काट रहे,
अपनी कमाई को कहीं बाँट रहे।
नौकरी की तालीम ले कर,
आया जो करने नौकरी,
सुकून नहीं है पा ली अब ,
कोई छोटी-मोटी नौकरी ।
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बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर (उ0प्र0)