Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Mar 2020 · 2 min read

*** ” नाविक ले पतवार….! ” ***

# भोर हो चला है , कश्ती संवार ;
नाविक ले हाथों में पतवार ।
चल आगे बढ़ , सागर की लहरों को चीर ,
कर उस पर वार ।
ये ना सोंच , सुबह हुआ तो लहरों के जोर ,
कम हो जायेगा ।
मध्यांतर में सघन , संध्या तक सरल ;
और रजनी की आगोश़ में विरल हो जायेगा ।
उक्त सोचना एक भ्रम है ,
कब ज्यादा , कब कम ;
ये एक वहम है ।
ना जाने किस क्षण ,
कर जाए हम पर वार ;
है रहना माझी , हर वक़्त हमको तैयार ।
कौन जाने नेक है , उसके इरादे ,
कब बने भंवर-जाल
कब कश्ती से , हमको गिरा दे ।
ये ना जाने कोई यारा ,
फिर हम कैसे…? अनुमान लगा दें ।
हो चाहे परिस्थितियाँ विषम ,
लहरों के विपरीत चलना है ;
अदम्य साहस रखना है ।
सागर-सलिल…,
करेगा जलील ;
और घेरा जल-समीर का ,
उनके साथ ही रहेगा ।
कश्ती से भी कहेगा ,
लौट जा वरना….!
काल-भंवर से गुजरना पड़ेगा ।
और…
काल-चक्र का क्या पता ;
यमराज जी के , घर भी जाना पड़ेगा ।
गुमराह भरी बातें कर हमसे ;
विचलित करने का , प्रयास भी करेगा ।
मन में , हमने ठाना है ;
लक्ष्य की ओर जाना है ।
सो…, हे नाविक…! ,
हो अभी से तैयार… ;
भोर हो चला है ,
ले हाथों में पतवार ।
चल आगे बढ़ , लहरों को चीर ,
कर उस पर विजयी वार ।
## काश…! , कोई गति न होता ,
समय के पांव में ;
हम यूँ ही लौट चलते ,
बचपन की नाव में ।
जहाँ न कोई ग़म होता ;
और न कहीं राह में ,
भटकने का , कोई भ्रम होता ।
अब…! आ….! , चल….! ,
अपनी बाहू बलिष्ठ कर ;
अपना तन-मन ,
तनिक हिष्ठ और पुष्ठ कर ।
हो चल..! अब तैयार ,
कश्ती पर हो कर सवार ।
अभी तो…! ,
ये सागर तट का किनारा है ;
इसी कश्ती के सहारे ,
इस छोर से उस छोर तक जाना है।
मौसम भी….
कुछ इतरायेग ,
अपनी कोई…,
तिकड़मी-चाल चल जायेगा ।
बिन बादल , वर्षा-जाल…,
फैला जायेगा ,
और लहरों के संग में…,
मिल जायेगा ।
और भी आगे क्या कहूँ…? यारा ;
कभी धूप , कभी छाँव बन ,
कोहरे के रंग-ढंग में मिल जायेगा ।
छल करेगी नीर-निशा ,
बदल देगी अपनी दिशा ,
फिर भी….! हमें चलना होगा ,
राह नहीं बदलना होगा ।
लहरों के संग ,
आंधियों के शोर होंगे ;
हमें लक्ष्य से , विचलित करने ,
यत्न- प्रयत्न पुरजोर होंगे ।
माना कि राह कठिन है ,
हम भी दिशा-विहीन हैं ।
हो सके उनके वार से ;
हम , दिशा-हीन हो जायेंगे ।
चलते-चलते राह भटक ;
भंवरी-भंवर-जाल में , विलीन हो जायेंगे।
लेकिन…! ,
न हम विवेकहीन है ,
हम अपने पूर्वज ” मनु ” के जीन है ।
न कोई , हम चिंदी-चील हैं ,
हम भी , यत्न-प्रयत्नशील हैं ।
सागर भी यह जाने.. ,
सात समंदर पार करने वाले ;
ओ मिट्टी के पुतले , वह भी पहचाने ।
सो…! , भोर हो चला है ,
हे राही नाविक-मतवाले ;
कश्ती संवार , ले हाथों में पतवार ।
चल….! आगे बढ़….! ,
सागर के लहरों को चीर ;
कर उस पर विजयी वार…!!!!!
चल….! आगे बढ़ …!
सागर के लहरों को चीर ;
कर उस पर विजय वार….!!!!!!

****************∆∆∆***************

* बी पी पटेल *
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
१५ / ३ / २०२०

Language: Hindi
478 Views
Join our official announcements group on Whatsapp & get all the major updates from Sahityapedia directly on Whatsapp.
You may also like:
शेर
शेर
RAJA KUMAR 'CHOURASIA'
माय
माय
Acharya Rama Nand Mandal
उफ़ वो उनकी कातिल भरी निगाहें,
उफ़ वो उनकी कातिल भरी निगाहें,
Vishal babu (vishu)
फायदा उठाया है उसने अपने पद का
फायदा उठाया है उसने अपने पद का
कवि दीपक बवेजा
Hum khuch din bat nhi kiye apse.
Hum khuch din bat nhi kiye apse.
Sakshi Tripathi
Gazal
Gazal
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
दलित समुदाय।
दलित समुदाय।
Vijay kannauje
*कैसे हम आज़ाद हैं?*
*कैसे हम आज़ाद हैं?*
Dushyant Kumar
■ आज की ग़ज़ल
■ आज की ग़ज़ल
*Author प्रणय प्रभात*
*मजदूर*
*मजदूर*
Shashi kala vyas
मैं और तुम-कविता
मैं और तुम-कविता
Shyam Pandey
हमने जब तेरा
हमने जब तेरा
Dr fauzia Naseem shad
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
लौटना मुश्किल होता है
लौटना मुश्किल होता है
Saraswati Bajpai
जीवात्मा
जीवात्मा
Mahendra singh kiroula
🧑‍🎓मेरी सफर शायरी🙋
🧑‍🎓मेरी सफर शायरी🙋
Ms.Ankit Halke jha
कविता का जन्म
कविता का जन्म
Dr. Rajiv
मम्मी थी इसलिए मैं हूँ...!! मम्मी I Miss U😔
मम्मी थी इसलिए मैं हूँ...!! मम्मी I Miss U😔
Ravi Malviya
*मोबाइल की जपते माला (मुक्तक)*
*मोबाइल की जपते माला (मुक्तक)*
Ravi Prakash
Laghukatha :-Kindness
Laghukatha :-Kindness
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
नित नए संघर्ष करो (मजदूर दिवस)
नित नए संघर्ष करो (मजदूर दिवस)
श्री रमण 'श्रीपद्'
दिया एक जलाए
दिया एक जलाए
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सोचा नहीं कभी
सोचा नहीं कभी
gurudeenverma198
उसकी जुबाँ की तरकश में है झूठ हजार
उसकी जुबाँ की तरकश में है झूठ हजार
'अशांत' शेखर
काश ये मदर्स डे रोज आए ..
काश ये मदर्स डे रोज आए ..
ओनिका सेतिया 'अनु '
मुझको शिकायत है
मुझको शिकायत है
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
बूत परस्ती से ही सीखा,
बूत परस्ती से ही सीखा,
Satish Srijan
जनरेशन गैप / पीढ़ी अंतराल
जनरेशन गैप / पीढ़ी अंतराल
नन्दलाल सिंह 'कांतिपति'
जीवन का अंत है, पर संभावनाएं अनंत हैं
जीवन का अंत है, पर संभावनाएं अनंत हैं
Pankaj Sen
धार्मिक होने का मतलब यह कतई नहीं कि हम किसी मनुष्य के आगे नत
धार्मिक होने का मतलब यह कतई नहीं कि हम किसी मनुष्य के आगे नत
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
Loading...