नारी तेरे रूप अनेक
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अलग अलग रूपों में नारी, इस जग में, अवतारी जाती है।
किसी रूप में पूजी जाती है, किसी रूप में प्रताड़ी जाती है।।
परिजनों के बीच में नारी माँ बेटी बहन और पत्नी रूप में आती है।
घर भर की खुशियों का बीड़ा नारी अपने हर रूप में देखो उठाती है।।
बेटी के रूप पैदा होकर नारी जब अपने मात पिता को सम्मान पहुँचाती है।
बहन रूप में भ्राता प्रिय बनकर वो अपने सब नख़रे अपने भाईयों से उठवाती है।।
विवाह वेदी पर लेकर फेरे जो अपने पिता के घर को छोड़ पति संग जाती है।
फिर वो जीवन भर ससुराल में रहकर अपना पत्नी धर्म निभाती है।।
माँ का रूप पाने की ख़ातिर नारी अपने शरीर से अपने अंश का जन्म कराती है।
अपने इन चारों रूप में नारी जन्म लेने से जन्म देने तक का दायित्व निभाती है।।
इसके अतिरिक्त हर घर में नारी अन्नपूर्णा रूप में भोजन का प्रबंध भी करती है।
और अपनी व्यंजन कला के माध्यम से अपने परिवार का ध्यान भी रखती है।।
बच्चों को स्वावलंबी जागरूक संस्कारी और आत्म निर्भर भी वही बनती है।
कहते हैं नारी से घर बनता है और नारी के बिना हर घर बस चारदीवारी है।।
कहे विजय बिजनौरी नारी को समझने वाला पुरुष बड़ा भाग्यशाली होता है।
लाख जतन करता है फिर भी कोई मनुष्य एक जन्म में समझ नहीं पाता है।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।