#धरती-सावन
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#धरती-सावन
सावन मेघा घिर-घिर बरसें, धरती की प्यास बुझाएँ।
नव आशाएँ हरियाली की, हरजन का मन हर्षाएँ।।
स्वच्छ हुआ रुत चमकीला बन, ध्यान खींचता जाए रे!
मन मस्ती में झूमे हरक्षण, गीत सुहाने गाए रे!!
नव पल्लव पुष्पों से सजकर, तरुवर हृदय लुभाते हैं।
दृश्य प्रकृति के पुलकित करते, मन में प्रेम जगाते हैं।।
तालाब भरे नदियाँ बहती, पवन हुआ मतवाला है।
आँगन-आँगन खुशियाँ नाचें, जन-मन भरा उजाला है।।
हरी चुनरिया ओढ़े धरती, अभिनव स्वप्न जगाती है।
हँसती गाती यौवन मद में, मीठे गीत सुनाती है।।
देख-देखकर रूप कृषक नव, फूला नहीं समाता है।
धरती माँ के स्नेह स्पर्श से, मन उज्ज्वल हो जाता है।।
#आर.एस.’प्रीतम’
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