“धन वालों मान यहाँ”
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धन दौलत की यारी रह गई, भईया रह रह गये नोटन के
राजनीति अब सेवा न जानें, नेता रह गये वोटन के
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धन वालों का मान रह गया, घट गयी इज्ज़त निर्धन की
धनी को Honey मिलै जीभर के, सुंदरता घट गई मन की
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धन वाला सज्जन बनकर के, लूट रहा है लोगों को
फैला भ्रष्टाचार हर जगह, दवा मिलै न रोगों को
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धन दौलत का लोभ बढ़ गया, भाई – भाई पै वार करै
घर की बीवी बन गई दुश्मन, बिन पैसे ना प्यार करें
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घूसखोर धनवान बना गया, निर्धनरह गई स
झूठे सत्यदेव बन बैठे, फैली है महामारी
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सज्जन दर-दर ठोकर खा रहा, नकटे मौज उड़ावैं
अन्यायी सोवै नौटन पै, कौन किसे समझावै
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लेखक:- खैमसिहं सैनी
M.A, B.Ed, M.Ed
Mob.No. 9266034599