देखो-देखो आया सावन।
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/3953f34a2711efa44fb9e78c2dcc8624_720576a3a1949041d9c2fa89f0a81028_600.jpg)
देखो-देखो आया सावन।
हरियाली की चादर ओढे़,
कितना लगता है मनभावन।
पात-पात सब निखर रहे हैं,
पुष्प खिला है उपवन-उपवन।
नव पल्लव, नव कोपल फूटें,
हर्षित है धरती का कानन।
बूँद-बूँद में घुला है अमृत,
कितना निर्मल, कितना पावन।
नृत्य दिखाने लगा मोर भी,
घुमा-घुमा कर अपनी गर्दन।
मिट्टी की भींनीं-सी खुश्बू,
कण-कण को करते सम्मोहन।
प्रणयातुर शत कीट विहग सब
तब करते है सुख का गायन।
छम छम छम गिरतीं हैं बूँदें ,
आर्द्र सुखों का करके क्रंदन।
उमर धुमर घिर घटा गगन में,
कडक-कड़क बिजली की गर्जन।
रिमझिम रिमझिम बूँदों के स्वर,
छू जाता भीतर अंतरमन।
देखो-देखो आया सावन ।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली