दूब
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माली काका, माली काका! मुझे दूब की उम्र बताओ।
दूब कहां बोता है कोई,
प्यार सरीखी उग आती हैं।
बागों की अनचाही बेटी,
बेफिक्री में बढ़ जाती हैं।
दूब नोचते माली काका, कहो कभी सोचा है तुमने,
धरती तुमसे कहती होगी, मत मेरी ओढ़नी हटाओ।
तुम्हें बताऊं अलग अलग
ही, रंग दूब के मैंने देखे।
दिन में सिमटी, रात में इसको,
ओस के गहने पहने देखे।
दूब पे चलते माली काका, कई दफा लगता है मुझको,
पांव पकड़ कहती है मुझसे, शाम ढल रही गीत सुनाओ।
जाने कितने ही जोड़ों की,
पहली पहल अंगूठी है ये।
बेलों सा साहय्य न मांगा,
कितनी सहज, अनूठी है ये।
दूब को छू के माली काका, कई बार अनुभव होता है,
सुख वैसा ही जैसे कोई मीत पुराना, गले लगाओ।
शिवा अवस्थी