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26 Nov 2022 · 1 min read

थकते नहीं हो क्या

थकते नहीं हो क्या
उतर आते हो रोज
बिन बुलाए,छत पर…

निहारता हूं तुम्हे जब
लगती हो इक परी सी
दुल्हन सी, ओढ़ चुनरी
बिन बुलाए, रथ पर…

सांझ भी कह न सकी
रात भी सह न सकी
वो उतरती जलपरियां
बिन सजाए, नग पर…

कुंकुम सी मदमासी
रुनझुन रुनझुन रुत
छमछम छमछम यूं
बिन बजाए, पग पर…

श्रृंगारित यह आंचल
धवल धवल मांसल
अलंकार पागल हुए
बिन बताए, नथ पर…

क्या बोलूं, क्या लिखूं
क्या सोचूं, क्या गुनूं
वैधव्य शशि शिशिर
बिन जगाए, जग पर..

इस अनमने सफर पर
क्यों, मैं विश्राम कर लूं
देखूं , कुछ और प्रहसन
बिन निभाए, नभ पर….

सूर्यकांत

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 49 Views

Books from सूर्यकांत द्विवेदी

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