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21 Aug 2016 · 1 min read

तिरी नाज़-बरदारी कैसे करूँ मैं

दीवाना है तेरा जो प्यासा बहुत है
कि फरहाद जंगल में भटका बहुत है

वो दिलबर है मेरी कि अय्यार जानो
कि आँखों का उसकी इशारा बहुत है

तिरी शख्सियत पे मैं बलिहारी जाऊं
तिरे साथ जीने की आशा बहुत है

तिरी नाज़-बरदारी कैसे करूँ मैं
अदब कम हुनर कम तमाशा बहुत है

वो कर देगा चुटकी में ही काम सारे
वो नाज़ुक बदन पर कुशादा बहुत है

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