तलाश
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इस अनजान शहर में किसी अपने
की तलाश में आया हूं ,
इस रहगुज़र की मंज़िल में किसी हमदर्द के मिलने की आस लिए आया हूं ,
अब तक भटकता रहा मंज़िल- मंज़िल,
दर्दे दिल को ना हुआ सुकुँ हासिल ,
दिन गुज़रता है हालातों के थपेड़े
सहते- सहते ,
रात कटती है चश्म-ए- पुर-आब सपने
संजोते- संजोते ,
एहसास -ए -तन्हाई अब काटती सी
हुई लगती है ,
किसी हम-नफ़स हम-नवा बग़ैर ये ज़िंदगी
अधूरी सी लगती है,