जोकर vs कठपुतली ~03
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वो कठपुतली थी जोकर की
मैं जोकर था, इक सर्कश का
वो दूर हुई तो पता चला
मैं तीर अधूरे तरकश का
अब भी याद हमें सब कुछ
जब नज़र वहीं रुक जाती थी
दीदार हमारा होते ही
वो पलक वहीं झुक जाती थी
ये अंदाज़ मोहब्बत था
या थी चाहत की बाज़ी
वो मना रही थी हमें मगर
थी दिल में उसके नाराजी
मैं गले लगाकर प्यार करूं
शायद उसका ये मकसद था
वो दूर हुई तो पता चला
मैं तीर अधूरे तरकश का
… भंडारी लोकेश ✍🏻