*जाता सूरज शाम का, आता प्रातः काल (कुंडलिया)*
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जाता सूरज शाम का, आता प्रातः काल (कुंडलिया)
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जाता सूरज शाम का, आता प्रातः काल
इसी तरह से चल रहा, क्रम यह सालों-साल
क्रम यह सालों-साल, चक्र का चलना जारी
चलते रहते सूर्य, देव का जग आभारी
कहते रवि कविराय, सनातन नित्य विधाता
अद्भुत है संसार, रूप-गुण कहा न जाता
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 615 451