जयबालाजी :: बने न मन वृन्दावन- कानन :: जितेन्द्र कमल आनंद ( पोस्ट ४२)
ताटंक छंद
बने न मन वृन्दावन – कानन , भक्ति नहीं कहलाती है
मिले इष्ट जिससे मनभावन , भक्ति वही कहलाती है
भक्ति सुमति है, भक्ति सुगति है, भक्ति प्रणय राधा वांला
तन से चम्पा, मन से मेंहदी , भक्ति सरल उर, अतिबाला।।४२।।
—- जितेन्द्र कमल आनंद