जब जब ……
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जब जब टूट बिखरती हूँ
मैं कविता में सिमटती हूँ
कुछ शब्द उबारे डूबी धड़कन
बटोरे आंसू पलकन पलकन
अक्षर अक्षर बारे उम्मीद बाती
शब्द सेतु बांधे विचलित मन
भावों की नदिया गोते खाती हूँ
मैं कविता में सिमटती जाती हूँ
हर्फ़ हर्फ़ दे बाहों में पनाह
हौले सहला जाते हर आह
नासूरों पर लफ़्ज़ों के मरहम
सिसकती चाह को मिलती राह
दर्द स्याही पन्नों छिड़काती हूँ
मैं कविता में सिमटती जाती हूँ
जब जब टूट बिखरती हूँ
मैं कविता में सिमटती हूँ
रेखांकन।रेखा