*जनवरी में साल आया है (मुक्तक)*
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जनवरी में साल आया है (मुक्तक)
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घने कोहरे की चादर में लिपट विकराल आया है
ठिठुरते ठंड से हैं सब कि लगता काल आया है
इसी मौसम में आना रह गया था इस निगोड़े को
न जाने सोचकर क्या जनवरी में साल आया है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उ.प्र.)
मो. 9997615451