*चोरी के बाद (व्यंग्य)*

*चोरी के बाद (व्यंग्य)*
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प्रकाशन तिथि : अमर उजाला 1-10-89
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इस व्यंग्य पर अमर उजाला से ₹75 की धनराशि पारिश्रमिक के रूप में प्राप्त हुई थी। लेख की प्रासंगिकता अभी भी कम नहीं हुई है। प्रस्तुत है व्यंग्य “चोरी के बाद”
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर ( उत्तर प्रदेश ) मोबाइल 99976 15451
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दोष तो उसका है जिसके चोरी हुई है। उसी को पलिस पकड़ेगी। यह भी है कि पकड़ में सबसे पहले वही आदमी आता है जिसके घर पर चोरी हुई है। जो थाने में रपट लिखाने गया, पुलिस ने धर लिया और बैठा रहा। क्यों भाई साहब ! आप घर में इतना सामान रखते ही क्यों हैं कि वह चोरी
हो जाये? सामान कम रखिये ताकि चोरी से बचा जा सके। या यह कि अब जबकि सामान कछ बचा ही नहीं और इस तरह आप चोरी से पूर्णतः सुरक्षित हैं । जाकर चैन से सोइये। लोग नहीं मानते और जाकर थानेदार को जगाते हैं कि हमारे चोरी हो गयी है।
कितने शर्म की बात है कि लोगों के घर
चोरी हो जाती है और वह सोते रहते हैं। उस पर सुबह-सुबह पुलिस की नींद खराब करते हैं। मैं तो पूछता हूं कि आप क्या कर रहे थे उस समय जब चोरी हो रही थी ? मतलब यह कि कहाँ थे ?
घर में थे, तो किस कमरे में ? कपड़े क्या क्या पहूनकर सोये थे ? कमरे की बिजली जल रही थी कि नहीं? रात में पानी पीने या पेशाब करने उठे कि नहीं ? चोर आपको नहीं दिखा, मगर क्यों ? सब बातों के जवाब सोच कर दीजिये। क्या वाकई चोरी हुई थी ?
याद कीजिये, कहीं आप सामान
कहीं और तो नहीं भूल गये ? आपका शक किस पर है ? हमारा शक तो पहले आप पर ही है। आपके घर चोरी हो गयी और
आप रो नहीं रहे हैं। संदेह से होगा ही ! खैर,
आपके भाई कितने हैं ? उन्हें बलाइए, उनसे
पूछताछ होगी। रिश्तेदारों पर भी शक हो ही रहा है। आपके मिलने वाले पिछले एक साल में कितने आये ? उनकी एक लिस्ट बना कर दीजिये। हम एक महीने के अन्दर घर की तलाशी जरूर लेंगे। नौकरों के तो बाप को भी पुलिस नहीं बख्शेगी। जब थाने में हंटर पड़ेंगे तो खुद उगल जायेंगे। पुलिस ने न जाने कितने निरपराध थानों
में मार-मार कर लहूलुहान किये हैं । यह नौकर तो चीज क्या हैं?
खैर छोड़िये। ठंडा पिलाइये । फिर चर्चा होगी । तब तक आप यहीं बैठिये। आप दुकान-दफ्तर जाने का विचार तो कम से कम एक महीने तक छोड़ ही दीजिये। आपसे रोज सुबह – दोपहर
– शाम सिपाही चोरी के विषय पर चर्चा करने और ठंडा पीने आया करेंगे। चोरी की चर्चा पलिस का प्रिय विषय है। यह पुलिस के लिए तात्विक चर्चा का विषय है । जैसे कोर्स की किताब पढ़ी या प्रोफेसर का लेक्चर सुना, या घर बैठे नोट्स तैयार
कर लिये, वैसे ही यह एक्शन का नहीं रियेक्शन का विषय है।
मानना पड़ेगा कि आप तो बड़े मुर्ख निकले कि अपने घर चोरी करा दी । यार, खुद तो मकान ठीक से रखते नहीं, दोष चोरों को देते हैं। जब दीवार नीची थी तो चोर तो छलांग लगाकर आते ही । दीवार जब कमजोर थी तो चोर उसे तोड़ कर अन्दर कैसे नहीं घुसते ? जमीन पोली थी
इस लिये सुरंग बन गयी । माल रखा था तो चोरी हो गया। अलमारी के ताले खुल सकने योग्य क्यों थे कि खुल गये और चोरी हो सकी ? गर्ज यह कि आप कैसे निकम्मे, जाहिल और लापरवाह हैं कि
आपके घर चोरी हो गयी।
फिर भी पुलिस आपके प्रति सांत्वना
प्रकट करती है । बड़े अफसोस की बात है कि चोर आपको बेवकफ और उल्लू बना गये। खूब गधे बने आप। खैर ,अब थाने चलिये, या ऐसा है कि यहाँ से चालीस किलोमीटर दूर कुछ माल जो निश्चय ही
आपका नहीं होगा, पर पकड़ा गया है। आप
उसकी शिनाख्त करने चलिये। दूकान-दफ्तर
मत जाइये। चोरों की तलाश, चोरी के माल की तलाश में ढूंढिये । थाने के चक्कर काटिये। पुलिस कोशिश कर रही है, विश्वास रखिये यही करेगी।
भाई साहब, आप तो आये दिन ऐसे सिर पर चढ़े आ रहे हैं, जैसे अकेले आपके ही घर पर पहली बार चोरी हुई हो ! शहर में और भी तो हजारों हैं, जिनके घर चोरी हुई और जिन्होंने पुलिस को नमस्कार करके घर पर बैठना ही अन्त में बेहतर समझा। आखिर चोर भी इंसान है और पुलिस भी इंसान है। फिर, इंसानी भाईचारा भी कोई चीज है कि नहीं ?