गुमाँ हैं हमको हम बंदर से इंसाँ बन चुके हैं पर
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गुमाँ हैं हमको हम बंदर से इंसाँ बन चुके हैं पर
मदारी की तरह ये ज़िंदगी हर दिन नचाती है
जॉनी अहमद क़ैस
गुमाँ हैं हमको हम बंदर से इंसाँ बन चुके हैं पर
मदारी की तरह ये ज़िंदगी हर दिन नचाती है
जॉनी अहमद क़ैस