, गुज़रा इक ज़माना
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गुज़रा इक ज़माना,तेरे इंतज़ार में सनम।
कैसे करें शिकायत,और किससे कहे हम।
मन की घुटन से घुटने लगा था जब दम
मजबूरन उठानी पड़ी , फिर मुझे कलम।
समाज ने सवाल पूछे मुझसे भारी भरकम
कुछ अलग ही उठाने पड़े, मुझे कदम।
तुम्हारी आंख कभी, हो न अश्क से नम
हर सजदे के साथ यही दुआ करते हैं हम।
सुरिंदर कौर