ग़ज़ल / ये दीवार गिराने दो….!

#ग़ज़ल
■ ये दीवार गिराने दो….!!
【प्रणय प्रभात 】
★ अपने कद की लंबाई की बातें छोड़ो जाने दो।
ख़ुद के पैरों में सर होगा सूरज सर पे आने दो।।
★ रात के काले अंधियारों से लोहा लेगा एक दिया।
शाम ढले तक और ज़रा इस सूरज को इतराने दो।।
★ हिन्दू है वो एक परिंदा जो गुम्बद पर बैठा है।
मुसलमान हो जाएगा मीनारों तक उड़ जाने दो।।
★ सुख-दुःख आँसू और हँसी का आना-जाना जारी हो।
मुझको छोटे से आँगन की ये दीवार गिराने दो।।
★ गम, गुस्सा, शिकवा हो चाहे नफ़रत जैसी शै कोई।
दिल मे जो कुछ भरा पड़ा है आँखों से बह जाने दो।।
★ रुसवाई से, तन्हाई से दिल वालों का नाता है।।
जैसे भी जिसका दिल बहल उसको दिल बहलाने दो।।
★ मयख़ाने में, तहख़ाने में, दूर किसी बुतख़ाने में।
जो भी चाहे जैसी चाहे दुनिया उसे बसाने दो।।
【आज #इंदौर_समाचार में प्रकाशित ग़ज़ल】