खेल भावनाओं से खेलो, जीवन भी है खेल रे
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आते जाते हैं सुख दुख, जीवन भी है रेल रे
खेल भावनाओं से खेलें, जीवन भी है खेल रे
कभी हार और कभी जीत, होती रहती है खेल में
नहीं उदास होना रे वन्दे, जीवन रूपी रेल में
बारी बारी से सुख दुख के, स्टेशन आते जाते हैं
बारी जब जिसकी आती है, चढ़ते उतरते रहते हैं
सुख शांति और हंसी खुशी से,सफर करें हम रेल में
आशा और विश्वास रखें,हम फिर जीतेंगे खेल में
प्रेम शांति आनंद से बैठें, जीवन रुपी रेल में
यात्रा एक दिन पूरी होगी,रुक जाएगी रेल रे
खेल ख़त्म हो जाएगा,जगत आने जाने का खेल रे
खेल भावनाओं से खेलो, जीवन भी है खेल रे
सुरेश कुमार चतुर्वेदी