खुद की तलाश में मन

तन्हा मन ढूंढने चला अंतर्मन।
चहुं दिशा छाये काले घन।
दिखे कहीं कोई उजली किरन
खिल जाये अस्तित्व हो सिरहन।
उस अनंत को जान जाऊं मैं
दिया जिसने मुझे ये जीवन धन।
क्यों उसको भूला कर बैठी हूं
क्यों बन गई इतनी कृतघ्न।
मान खुद को अंश तू खुदा का
समर्पित करदे तू अपना जीवन।
सुरिंदर कौर