खंडकाव्य
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यह जीवन है खंड काव्य
खण्ड खण्ड अपने भाष्य
क्या खोया है, पाया क्या
अधर अधर पर कटु हास्य।।
किरदारों के कथ्य रचे हैं
अवतारों के सत्य पढ़े हैं
किंतु मानस अपना रीता
छद्म वेश अमर्त्य खड़े हैं।
इतिहासों के पृष्ठों पर यूँ
मेरे कितने नाम खुदे हैं
हुई न पूरित आस जगत की
खण्ड खण्ड काव्य रचे हैं।।
सूर्यकान्त