कौन लोग थे
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दिल पर दस्तक देने वाले ,कौन लोग थे।
लग गये जो हमको जाने ,क्या रोग थे।
किन किन बातों पर ,आंखें उसकी छलकी
मैं न जाना उसके मन में क्या सोग थे।
भूखे पेट भिखारी करे उस ईश्वर से मिन्नतें
जिस ईश्वर के आगे रखें छप्पन भोग थे।
न तन संभला ,न मन ही संभला है हम से
घर से निकले हम कमाने को जोग थे।
खुद से मुलाकात करने को ,खुद से उलझे
न खुद को मिले,न खुदा मिला क्या संयोग थे।
सुरिंदर कौर