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9 Jul 2018 · 7 min read

किरदार पर शा’इरों की दमदार शा’इरी

संकलनकर्ता: महावीर उत्तरांचली

(1.)
इस के सिवा अब और तो पहचान कुछ नहीं
जाऊँ कहाँ मैं अपना ये किरदार छोड़ कर
—भारत भूषण पन्त

(2.)
जानता है पेश होना वह नये किरदार में
इसलिए शामिल हुआ मिलता है हर सरकार में
—रमेश प्रसून

(3.)
लोग किरदार की जानिब भी नज़र रखते हैं
सिर्फ़ दस्तार से इज़्ज़त नहीं मिलने वाली
—तुफ़ैल चतुर्वेदी

(4.)
व्यवस्था कष्टकारी क्यूँ न हो किरदार ऐसा है
ये जनता जानती है सब कहाँ तुम सर झुकाते हो
—महावीर उत्तरांचली

(5.)
ज़िंदा रखना हो मोहब्बत में जो किरदार मिरा
साअत-ए-वस्ल कहानी में न रक्खी जाए
—फ़ाज़िल जमीली

(6.)
अपने किरदार के दाग़ों को छुपाने के लिए
मेरे आमाल पे तन्क़ीद को बरपा रक्खा
—रईसु दीन तहूर जाफ़री

(7.)
ये ख़ुद-सर वक़्त ले जाए कहानी को कहाँ जाने
मुसन्निफ़ का किसी किरदार में होना ज़रूरी है
—शोएब बिन अज़ीज़

(8.)
कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा
हर लम्हा गुज़रता है ख़तावार हमारा
—हयात लखनवी

(9.)
मसाफ़त ज़िंदगी है और दुनिया इक सराए
तो इस तमसील में तूफ़ान का किरदार क्यूँ है
—याक़ूब तसव्वुर

(10.)
वैसे तो मैं भी भुला सकता हूँ तुझ को लेकिन
इश्क़ हूँ सो मिरे किरदार पे हर्फ़ आता है
—फ़रताश सय्यद

(11.)
देखते रहते हैं ख़ुद अपना तमाशा दिन रात
हम हैं ख़ुद अपने ही किरदार के मारे हुए लोग
—मिर्ज़ा अतहर ज़िया

(12.)
घर से निकल भी आएँ मगर यार भी तो हो
जी को लगे कहीं कोई किरदार भी तो हो
—मोहसिन जलगांवी

(13.)
वो अपने शहर के मिटते हुए किरदार पर चुप था
अजब इक लापता ज़ात उस के अपने सर पे रक्खी थी
—राजेन्द्र मनचंदा बानी

(14.)
ये कोई और ही किरदार है तुम्हारी तरह
तुम्हारा ज़िक्र नहीं है मिरी कहानी में
—राहत इंदौरी

(15.)
किरदार ही से ज़ीनत-ए-अफ़्लाक हो गए
किरदार गिर गया ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गए
—बनो ताहिरा सईद

(16.)
जब उस का किरदार तुम्हारे सच की ज़द में आया
लिखने वाला शहर की काली हर दीवार करेगा
—नोशी गिलानी

(17.)
रौशनी ऐसी अजब थी रंग-भूमी की ‘नसीम’
हो गए किरदार मुदग़म कृष्ण भी राधा लगा
—इफ़्तिख़ार नसीम

(18.)
जानिब-ए-कूचा-ओ-बाज़ार न देखा जाए
ग़ौर से शहर का किरदार न देखा जाए
—मख़मूर सईदी

(19.)
बौना था वो ज़रूर मगर इस के बावजूद
किरदार के लिहाज़ से क़द का बुलंद था
—युसूफ़ जमाल

(20.)
जिस का शाहों की नज़र में कोई किरदार न था
एक किरदार था किरदार भी ऐसा वैसा
—जावेद सबा

(21.)
ज़िंदगी बनती है किरदार से किरदार बना
मुख़्तसर ज़ीस्त के लम्हात को बरबाद न कर
—अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

(22.)
मेरे किरदार में मुज़्मर है तुम्हारा किरदार
देख कर क्यूँ मिरी तस्वीर ख़फ़ा हो तुम लोग
—अख़तर मुस्लिमी

(23.)
मसनूई किरदार के लोगो
सच्चाई के रूप दिखाओ
—हसीब रहबर

(24.)
देखें क्या क्या तोहमत लेगा
वो किरदार बचाने बैठा
—अनिल अभिषेक

(25.)
बस अपना किरदार निभा
किस की होगी मात न पूछ
—मनीश शुक्ला

(26.)
ज़िमनी किरदार हूँ कहानी का
अपनी तक़दीर का पता है मुझे
—इसहाक़ विरदग

(27.)
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
—राहत इंदौरी

(28.)
दोस्त बन कर दग़ा न दे जो वो
अपने किरदार तक नहीं पहुँचा
—अजय सहाब

(29.)
मरने वाला है मरकज़ी किरदार
आख़िरी मोड़ पर कहानी है
—आलोक मिश्रा

(30.)
मिली है ज़िंदगी तो हम ने सोचा
हमें कैसा यहाँ किरदार करना
—सबीहा सबा

(31.)
लफ़्ज़ों के कैसे कैसे मआनी बदल गए
किर्दार-कुश भी साहब-ए-किरदार बन गए
—मुख़तार जावेद

(32.)
इस कहानी का मरकज़ी किरदार
आदमी है कि आदमिय्यत है
—रसा चुग़ताई

(33.)
तेरे किरदार को उठाने में
मुझ को मरना पड़ा फ़साने में
—इसहाक़ विरदग

(34.)
दिलकश हैं किरदार ये सब
लैला हो शीरीं या हीर
—सरदार सोज़

(35.)
सामने आएगा मिरा किरदार
ज़िक्र जब दास्ताँ से गुज़रेगा
—गोविन्द गुलशन

(36.)
कहानी रुख़ बदलना चाहती है
नए किरदार आने लग गए हैं
—मदन मोहन दानिश

(37.)
पस-ए-पर्दा बहुत बे-पर्दगी है
बहुत बेज़ार है किरदार अपना
—नईम रज़ा भट्टी

(38.)
ऐसे कुछ रहनुमा मयस्सर हों
नेक किरदार कर दिया जाए
—हस्सान अहमद आवान

(39.)
सारे किरदार मर गए लेकिन
रौ में अब भी मिरी कहानी है
—प्रखर मालवीय कान्हा

(40.)
ज़माने की रविश से कर लिया है सब ने समझौता
कोई मअनी नहीं रखता यहाँ किरदार का झगड़ा
—ज़फ़र कमाली

(41.)
सच्चाई हमदर्दी यारी यूँ हम में से चली गई
जैसे ख़ुद किरदार ख़फ़ा हो जाएँ किसी कहानी से
—ज़फ़र सहबाई

(42.)
याद नहीं है बिछड़े वो किरदार कहाँ
याद नहीं किस गाम कहानी ख़त्म हुई
—शबनम शकील

(43.)
ख़्वाहिश के ख़ूँ की बरखा से
किरदार का बूटा पलता है
—शेर अफ़ज़ल जाफ़री

(44.)
चीख़ उठता है दफ़अतन किरदार
जब कोई शख़्स बद-गुमाँ हो जाए
—अहमद अशफ़ाक़

(45.)
जहाँ किरदार गूँगे देखने वाले हैं अंधे
इसी मंज़र से तो पर्दा हटा रक्खा है तुम ने
—सलीम कौसर

(46.)
मिरा था मरकज़ी किरदार इस कहानी में
बड़े सलीक़े से बे-माजरा किया गया हूँ
—इरफ़ान सत्तार

(47.)
तेरे किरदार पर हैं शाहिद-ए-हाल
ख़ुश्क-लब और चश्म-ए-तर ऐ दिल
—इमदाद अली बहर

(48.)
हमें भी इस कहानी का कोई किरदार समझो
कि जिस में लब पे मोहरें हैं दरीचे बोलते हैं
—अख़्तर होशियारपुरी

(49.)
कुछ मिरे किरदार में लिक्खा था ग़म
कुछ मिरा रद्द-ए-अमल बेजा न था
—सय्यद मुनीर

(50.)
कहानी ख़त्म हुई तब मुझे ख़याल आया
तिरे सिवा भी तो किरदार थे कहानी में
—फ़रहत एहसास

(51.)
आगे ही निकलना है जो ‘शायान’ से उन को
अख़्लाक़ से आ’माल से किरदार से निकलें
—शायान क़ुरैशी

(52.)
हक़ीर सा मिरा किरदार है कहानी में
मिसाल-ए-गर्द कहीं कारवाँ में रहता हूँ
—हमदम कशमीरी

(53.)
किरदार देखने की रिवायत नहीं रही
अब आदमी ये देखता है माल-ओ-ज़र भी है
—शायान क़ुरैशी

(54.)
वो बदलते हैं किरदार दिन में कई
देखते हैं जो शाम-ओ-सहर आइना
—सचिन शालिनी

(55.)
तुझ से किरदार हों ‘बकुल’ जिन में
ऐसे क़िस्से कहाँ सँभलते हैं
—बकुल देव

(56.)
सभी किरदार थक कर सो गए हैं
मगर अब तक कहानी चल रही है
—ख़ावर जीलानी

(57.)
‘रज़ा’ मैं नज़रें मिलाऊँ तो किस तरह उस से
हक़ीक़तन मिरे किरदार में वो झाँकता है
—रज़ा मौरान्वी

(58.)
मैं रहूँ या न रहूँ तेरी कहानी तो रहे
अपने जैसे कई किरदार बनाने हैं मुझे
—फ़ाज़िल जमीली

(59.)
देखो मिरा किरदार कहीं पर भी नहीं है
देखो ये कोई और कहानी तो नहीं क्या
—आफ़ताब अहमद

(60.)
ज़िंदगी एक कहानी के सिवा कुछ भी नहीं
लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं
—मालिकज़ादा जावेद

(61.)
ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन
लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं
—अब्बास ताबिश

(62.)
बे-सूद हर इक क़ौल हर इक शेर है ‘राग़िब’
गर उस के मुआफ़िक़ तिरा किरदार नहीं तो
—इफ़्तिख़ार राग़िब

(63.)
जिन के किरदार में हैं दाग़ कई
वो हमें आइना दिखाते हैं
—मीनाक्षी जिजीविषा

(64.)
वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
उसी पे ख़त्म है तासीर बेवफ़ाई की
—इक़बाल अशहर

(65.)
रम्ज़-ए-ख़ुदा की रम्ज़ भरी रौशनी मियाँ
मैं चाहता तो हूँ मिरे किरदार तक चले
—साइम जी

(66.)
मैं सर-ए-मक़्तल हदीस-ए-ज़िंदगी कहता रहा
उँगलियाँ उठती रहीं ‘मोहसिन’ मिरे किरदार पर
—मोहसिन नक़वी

(67.)
हँसता हूँ खेलता हूँ चीख़ता हूँ रोता हूँ
अपने किरदार में यक-जाई मुझे आती नहीं
—क़ासिम याक़ूब

(68.)
तेरी मर्ज़ी से मैं माँगता हूँ तुझे
मेरा किरदार मेरी हवस में भी है
—असरारुल हक़ असरार

(69.)
जो मेरे शब-ओ-रोज़ में शामिल ही नहीं थे
किरदार वही मेरी कहानी के लिए हैं
—महताब हैदर नक़वी

(70.)
रात के वक़्त हर इक सम्त थे नक़ली सूरज
साए थे अस्ल जो किरदार निभाने आए
—गोविन्द गुलशन

(71.)
तुम ख़ुद ही दास्तान बदलते हो दफ़अतन
हम वर्ना देखते नहीं किरदार से परे
—दिलावर अली आज़र

(72.)
इक दास्तान-गो हुआ ऐसा कि अपने बाद
सारी कहानियों का वो किरदार हो गया
—सग़ीर मलाल

(73.)
इतना किरदार है नौटंकी में अपना जैसे
धूप में मोम के अंदाम से आए हुए हैं
—राशिद अमीन

(74.)
ये अँधेरे भी हमारे लिए आईना हैं
रू-ब-रू करते हैं किरदार के कितने पहलू
—अदीब सुहैल

(75.)
यूँ मरकज़ी किरदार में हम डूबे हैं जैसे
ख़ुद हम ने ड्रामे का ये किरदार किया है
—गुलज़ार वफ़ा चौदरी

(76.)
सारे किरदार इत्मिनान में हैं
अब कहानी में मोड़ पैदा करें
—निशांत श्रीवास्तव नायाब

(77.)
कोई किरदार अदा करता है क़ीमत इस की
जब कहानी को नया मोड़ दिया जाता है
—अज़हर नवाज़

(78.)
किसी भी हश्र से महरूम ही रहा वो भी
मिरी तरह का जो किरदार था कहानी में
—रेनू नय्यर

(79.)
मैं उस किरदार को अब जी सकूँगा
मैं उस किरदार पर मरने लगा हूँ
—प्रबुद्ध सौरभ

(80.)
कहानी में जो होता ही नहीं है
कहानी का वही किरदार हूँ मैं
रहमान फ़ारिस

(81.)
आवार्गां के वास्ते किरदार दश्त का
अंजाम-कार हीता-ए-ज़िंदान ही का है
—ख़ावर जीलानी

(82.)
किरदार आधे मर चुके आधे पलट गए
इस वक़्त क्यूँ फ़साने में लाया गया हूँ मैं
—इमरान हुसैन आज़ाद

(83.)
यही हम आप हैं हस्ती की कहानी, इस में
कोई अफ़्सानवी किरदार नहीं होता यार
—इफ़्तिख़ार मुग़ल

(84.)
अगरचे दास्ताँ मेरी है फिर भी
कोई किरदार मुझ सा क्यूँ नहीं है
—मुर्ली धर शर्मा तालिब

(85.)
बरहना था मैं इक शीशे के घर में
मिरा किरदार कोई खोलता क्या
—मयंक अवस्थी

(86.)
नए दिन में नए किरदार में हूँ
मिरा अपना कोई चेहरा नहीं है
—प्रखर मालवीय कान्हा

(87.)
मिरा किरदार इस में हो गया गुम
तुम्हारी याद भी इक दास्ताँ है
—बकुल देव

(88.)
अजीब शख़्स है किरदार माँगता है मिरा
सिवाए इस के मिरे पास अब बचा क्या है
—महेंद्र प्रताप चाँद

(89.)
अजीब शख़्स है किरदार माँगता है मिरा
सिवाए इस के मिरे पास अब बचा क्या है
—महेंद्र प्रताप चाँद

(90.)
मैं बद नहीं हूँ बस यूँही बदनाम हो गया
किरदार मेरा जेहल की तोहमत निगल गई
—शहज़ाद हुसैन साइल

(91.)
अपना तो है ज़ाहिर-ओ-बातिन एक मगर
यारों की गुफ़्तार जुदा किरदार जुदा
—क़तील शिफ़ाई

(92.)
ऐसी कहानी का मैं आख़िरी किरदार था
जिस में कोई रस न था कोई भी औरत न थी
—मोहम्मद अल्वी

(93.)
मैं अभी एक हवाले से उसे देखता हूँ
दफ़अ’तन वो नए किरदार में आ जाता है
—अहमद रिज़वान

(94.)
जहाँ कहानी में क़ातिल बरी हुआ है वहाँ
हम इक गवाह का किरदार करना चाहते हैं
—सलीम कौसर

(95.)
सब हैं किरदार इक कहानी के
वर्ना शैतान क्या फ़रिश्ता क्या
—बशीर बद्र

(96.)
कोई कहानी जब बोझल हो जाती है
नाटक के किरदार उलझने लगते हैं
—भारत भूषण पन्त

(97.)
एक ज़हराब-ए-ग़म सीना सीना सफ़र
एक किरदार सब दास्तानों का है
—राजेन्द्र मनचंदा बानी

(98.)
लग न जाए कोई दाग़ किरदार पर
ज़िंदा रखता है दिल में ये डर आइना
—सचिन शालिनी

(99.)
राएगाँ जाती हुई उम्र-ए-रवाँ की इक झलक
ताज़ियाना है क़नाअत-आश्ना किरदार पर
—अशहर हाशमी

(100.)
हर इक किरदार में ढलने की चाहत
मतानत देखिए बहरूपिया की
—पवन कुमार

(101.)
कहानी से अजब वहशत हुई है
मिरा किरदार जब पुख़्ता हुआ है
—शाहबाज़ रिज़्वी

(102.)
जोड़ता रहता हूँ अक्सर एक क़िस्से के वरक़
जिस के सब किरदार लोगो बे-ठिकाने हो गए
—फ़सीह अकमल

(साभार, संदर्भ: ‘कविताकोश’; ‘रेख़्ता’; ‘स्वर्गविभा’; ‘प्रतिलिपि’; ‘साहित्यकुंज’ आदि हिंदी वेबसाइट्स।)

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