कहता रहता हूँ खुद से

जबकि वह नजर नहीं आता,
जिसको मैं चाहता हूँ करना,
जैसे कि सभी हो मेरे दुश्मन,
और नहीं हो किसी से प्यार,
इस तरहां मैं,
कहता रहता हूँ खुद से।
करता रहता हूँ याद उनको,
जिनके साथ कभी रही है,
मेरी मुलाकातें हसीन,
आज क्यों उदास है वो,
देखकर सूरत मेरी,
और निराश हो जाता हूँ ,
इस तरहां मैं,
कहता रहता हूँ खुद से।
होता हूँ कभी नाराज इतना,
कि कर दूं खून उनका,
जिन्होंने किया है मुझको,
इस प्रकार बर्बाद- बदनाम,
मुझसे करके विश्वासघात,
किया है जिन्होंने खुद को,
आबाद मेरा करके खून,
मगर जीना है मुझको,
बनकर दोस्त सभी का,
अपने वतन के खातिर,
इस तरहां मैं,
कहता रहता हूँ खुद से।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)