कलियुगी रिश्ते!
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/c44f7f96fc9426a6210310596645327b_d9e638930e61ced4bb813dc53eced02e_600.jpg)
चलते चलते राहों पर,
कुछ ऐसे रिश्ते मिलते हैं,
जो होने पर ना रहते हैं,
और ना होने पर खलते हैं।
पर रहना क्यूँ उन रिश्तों को?
जो रहते रहते टलते हैं,
ना रोने को कहते हैं,
और हँसने भी ना देते हैं।
ढूढ़े क्यूँ उन रिश्तों को?
जो रामायण में मिलते हैं,
ये त्रेतायुग का दौर नहीं,
अब कलयुग में हम रहते हैं।