और बदल जाता है मूढ़ मेरा
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शीर्षक – और बदल जाता है मूढ़ मेरा
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कि आज तुमसे तकरार हो मेरी,
और कह दूं सारी बातें दिल की,
ताकि तू खराब नहीं करें मेरा मूढ़,
मगर तुम लगती हो बहुत प्यारी,
करती है जब तुम वो शरारतें,
जो पसंद है मुझको खराब मूढ़ में भी,
और बदल जाता है मूढ़ मेरा।
चाहता हूँ कि आज तो हम करेंगे,
बैठकर नजदीक प्रेम की बातें,
कि सुनायेंगे एक दूसरे को हम,
अपने अपने दिल के अरमान,
कि महकता रहे वो गुलशन हमेशा,
जिसको सींचा हैं हम दोनों ने,
लेकिन तब विपरीत हो जाता है
मेरा मूढ़ जब करती हो तुम,
मुझसे बेमतलब की बहस,
और बदल जाता है मूढ़ मेरा।
रहता हूँ इस उम्मीद में,
कि दिखाई देगी तुम्हारी सूरत,
और बदलेगी मेरी भी सूरत,
जबकि मालूम है मुझको,
कि तुमको मतलब नहीं मुझसे,
ऐसे में निभाती है मेरा साथ,
यह मदिरा और यह कविता,
और बदल जाता है मूढ़ मेरा।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाईल नम्बर- 9571070847