ओ लहर बहती रहो …
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चाँदनी को दे रही विदाई उनीन्दी पलक
अँगड़ा जागी लहर ललाट धनक अलक
तीर पर उतरी नहाने कनक रश्मि कुनकुनी
ओ लहर बहती रहो कर सब अनसुनी
पग बूँदों की पायल तन अरुणाई का पट
किरणों संग नर्तन शीश सूरज का घट
मंद मंद मदिर गीत गा रही धूप गुनगुनी
ओ लहर बहती रहो कर सब अनसुनी
कल कल छल छल तरुणाई की ताल
थिरक रही यौवन की नथनी कमाल
पुलकित टेर मन की पर्वतों ने सुनी
ओ लहर बहती रहो कर सब अनसुनी
ये कौन प्रिय रच गया पाँवों में महावर
ये कौन चितेरा चला गया हाथ पीले कर
दर्द ये किससे कहे बात है ये अन्दरूनी
ओ लहर बहती रहो कर सब अनसुनी
रेखांकन।रेखा ड्रोलिया
८.११.२३