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3 Feb 2017 · 1 min read

एक सोच

जिन्दा था जब में तो किसी ने पास अपने कभी बिठाया नहीं
अब खुद मेरे चारों तरफ बैठे जा रहे हैं
पहले किसी ने भी मेरा हाल कभी पूछा नहीं
अब देखो, सभी आंसू बहाए जा रहे हैं !!

एक रूमाल भी भेंट किया नहीं कभी जब जिन्दा थे
अब शाल और कपडे ऊपर से ओढ़ाये जा रहे हैं
सब को पता है यह शाल और कपडे नहीं हैं इस के काम के
फिर भी बेचारे दुनियादारी निभाये ही जा रहे हैं !!

कभी किसी ने एक वक्त का खाना भी नहीं खिलाया
अब मुंह में देसी घी मेरे डाले ही जा रहे हैं
जिन्दगी में एक कदम भी साथ न चल सका कोई
अब फूलों से सजाकर कंधे पर उठाये जा रहे हैं !!

अब जाकर पता चला है कि मौत जिन्दगी से बेहतर है
“अजीत’ तुम बेवजह ही जिन्दगी कि चाहत किये जा रहे थे..!!

कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
Tag: कविता
344 Views

Books from गायक और लेखक अजीत कुमार तलवार

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