एक तू ही नहीं बढ़ रहा , मंजिल की तरफ

एक तू ही नहीं बढ़ रहा , मंजिल की तरफ
जमाना दिनों दिन आगे बढ़ता जा रहा है !
वक्त का पहिया दिनों दिन चढ़ता जा रहा है ,
जिसको गढ़ना था इतिहास गढ़ना जा रहा है !!
कवि दीपक सरल
एक तू ही नहीं बढ़ रहा , मंजिल की तरफ
जमाना दिनों दिन आगे बढ़ता जा रहा है !
वक्त का पहिया दिनों दिन चढ़ता जा रहा है ,
जिसको गढ़ना था इतिहास गढ़ना जा रहा है !!
कवि दीपक सरल