एक और सुबह तुम्हारे बिना
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/0d958fe2ccfb4b30d12b86fa6a8eebfb_e5dc3e026474a523b688ad8f275d8b21_600.jpg)
एक और सुबह तुम्हारे बिना।
जिंदगी तन्हा तुम्हारे बिना।
पहुंचे तुम तक ,हम कैसे
मिटा हर निशां, तुम्हारे बिना।
सजदे में झुकी जो जबीं
हुआ खुदा मेहरबां,तुम्हारे बिना।
आंखें तकती है तेरी ही राह
लुटा मेरा आसतां,तुम्हारे बिना।
जिंदगी बोझ सी लगने लगी
हर सांस परेशां , तुम्हारे बिना।
इस सुबह की भी शाम हो जानी है
कौन रूके तन्हा तुम्हारे बिना।
सुरिंदर कौर