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19 Apr 2022 · 8 min read

*ऋषिकेश यात्रा 16 ,17 ,18 अप्रैल 2022*

*ऋषिकेश यात्रा 16 ,17 ,18 अप्रैल 2022*
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गंगा का निर्मल प्रवाह ऋषिकेश का प्राण है। ऊँचे-ऊँचे पर्वतों की गोद में जब गंगा बहती है ,तो लगता है मानो सृष्टि का संपूर्ण पवित्र भाव सिमट कर ऋषिकेश में एकत्र हो गया है । शुद्ध जल ,साफ-सुथरी वायु ,पहाड़ों की असीम शांति । चट्टानों पर उगे हुए हरे-भरे वृक्ष किसी ऋषि की भाँति तपस्या में अखंड लीन हुए प्रतीत होते हैं। शांत नीले आकाश में जब हमने पूर्ण चंद्रमा के दर्शन किए ,तब चंद्रमा का प्रकाश जल में अपनी चाँदनी को बिखेर कर अद्भुत सौंदर्य रच रहा था । आकाश की कालिमा पर चंद्रमा का उजाला ,चारों तरफ पहाड़ और हरियाली तथा नीचे तलहटी पर बह रही गंगा ! क्या इस परिदृश्य का कोई मूल्य आंँका जा सकता है ? कदापि नहीं । तभी तो इस अनमोल दृश्य को जी-भर कर निहारने के लिए न केवल सारे भारत से बल्कि संपूर्ण विश्व से श्रद्धालु ऋषिकेश आते हैं ।
ऋषिकेश में दो चीजें प्रसिद्ध हैं। एक परमार्थ निकेतन में गंगा-घाट की आरती और दूसरा रिवर राफ्टिंग ।
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गंगा-घाट पर आरती का आनंद
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. *गंगा-घाट पर आरती का आनंद* उठाने के लिए हम निर्धारित समय से आधा घंटा पहले गंगा-घाट पर पहुँच गए थे । लेकिन वास्तव में हम देर से पहुँचे थे ,क्योंकि घाट खचाखच भरा हुआ था । किसी तरह हमें फिर भी घाट पर बैठने का स्थान मिल गया । घाट पर पत्थर की साफ-सुथरी सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। *स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज तथा उनकी शिष्या साध्वी भगवती सरस्वती जी* भी उन्हीं सीढ़ियों पर मगर हम से काफी दूर विराजमान थे । स्वामी चिदानंद जी से पहले साध्वी भगवती सरस्वती जी का भाषण सुनने का सौभाग्य मिला। कुछ पंक्तियाँ अंग्रेजी में तथा शेष संबोधन टूटी-फूटी हिंदी में आपने दिया । आप की बोली सहज और मिठास भरी थी । उसमें भक्ति का भाव था। आपके विचारों का सार यही था कि भक्ति ही जीवन है तथा भारत की भूमि का स्पर्श अत्यंत भाग्य का विषय है ।
तदुपरांत अपने संबोधन में स्वामी चिदानंद सरस्वती जी महाराज ने साध्वी भगवती सरस्वती जी का परिचय दिया और कहा कि भारत की धरती हमेशा से अध्यात्म-प्रेमियों को आकृष्ट करती रही है। समर्पित भाव से गहन अध्यात्म में डूबने की अभिलाषा लेकर जिन्होंने भारत को अपनाया है ,ऐसे विश्व पटल के महत्वपूर्ण नामों में एक नाम साध्वी भगवती सरस्वती जी का है । स्वामी चिदानंद जी ने अपने संबोधन में साध्वी भगवती सरस्वती के जीवन पर प्रकाश डालते हुए श्रोताओं को बताया कि आप पच्चीस वर्ष पूर्व अमेरिका से भारत आई थीं। उस समय आपकी आयु मात्र पच्चीस वर्ष थी । ऋषिकेश में आकर आप माँ गंगा की हो गयीं और गंगा ने भी अपनी इस बेटी को हृदय से लगा लिया । जीवन इतना सादगी पूर्ण कि मात्र *चार साड़ियों में आठ वर्ष* से आपका गुजारा चल रहा है । पिछले दिनों राष्ट्रपति महोदय ऋषिकेश पधारे थे । आप से वार्ता की और आपकी सादगी देखकर आश्चर्यचकित रह गए । स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने श्रोताओं को अध्यात्म का सार समझाते हुए बताया कि जो दूसरों को जीत लेता है ,वह वीर कहलाता है लेकिन जो स्वयं को जीतने की सामर्थ्य अपने भीतर पैदा कर लेता है उसे महावीर कहते हैं । *हनुमान जन्मोत्सव* के पवित्र दिन 16 अप्रैल को हनुमान जी का विशेष स्मरण करते हुए स्वामी जी ने हनुमान जी की वीरता ,साहस और रामकथा में उनकी विशिष्ट भूमिका का स्मरण किया। कहा कि अगर हनुमान न होते ,राम कथा हम जैसी पढ़ते हैं वैसी न होती । कितना अतुलनीय बल और वीरता का परिदृश्य रहा होगा जब सुदूर लंका तक द्रोण पर्वत से औषधि की पूरी चट्टान ही उखाड़ कर हनुमान जी ले गए होंगे ! इसीलिए लोक गायकों ने अपने काव्य में एक सुंदर पंक्ति के माध्यम से कहा है *”राम जी चलें न हनुमान के बिना”* अर्थात हनुमान जी की महिमा अपरंपार है । राम रावण के युद्ध में राम की विजय सब साधनों से विहीन एक व्यक्ति की अपने आत्मबल से प्राप्त विजय है । वरना दृश्य यह था कि *रावण रथी विरथ रघुवीरा* अर्थात रावण तो रथ पर सवार था और भगवान राम पैदल थे । लेकिन जिनके पास सत्य का पक्ष होता है ,अंत में विजयी वही होता है। इसलिए धनवान बनना जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए ,धर्मवान बनना जीवन का लक्ष्य बनाओ । जीवन सुधर जाएगा । चीजों पर पकड़ अच्छी होनी चाहिए ,अकड़ से काम नहीं चलेगा । सूत्र-रूप में स्वामी जी ने जनता को पौधा लगाने, पानी बचाने तथा नदियों को सुरक्षित रखने का संदेश भी दिया । प्लास्टिक का उपयोग न करें ,यह भी बताया । स्वामी जी ने कहा कि आज हमारे बीच *भारत सरकार के पर्यटन सचिव श्री अरविंद जी* विराजमान हैं। भारत की संस्कृति से आपका प्रेम ही आपको ऋषिकेश खींच लाया । यही आकर्षण भारत के जन-जन में होना चाहिए। स्वामी जी के संबोधन के उपरांत गंगा जी की आरती आरंभ हुई ।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव ,त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव ,त्वमेव सर्वं मम देव देव

आदि श्लोकों के साथ-साथ भाव प्रवणता से वातावरण मंत्रमुग्ध हो गया ।
आरती का समय शाम का रहता है अर्थात संध्याकाल जिसमें दिन और रात आपस में मिलते हैं । देखते ही देखते अंधकार छाने लगा और सृष्टि में शांति के कण अधिक प्रभावी होते चले गए । आरती के उपरांत भीड़ छँटने में काफी समय लगा। परमार्थ निकेतन पतली गलियों में स्थित है। दोनों तरफ अनेक दुकानें बनी हुई हैं मूर्तियों, मालाओं ,थैलों,कपड़ों आदि सामान के एक से बढ़कर एक शोरूम बाजार की शोभा बढ़ा रहे थे। इन्हीं के बीच *कुल्हड़ की चाय* बेच रहे ठेले अपनी अलग ही छटा बिखेर रहे थे । गरमा-गरम समोसे और खस्ता कुछ दुकानों पर उपलब्ध थे । हमने भी समोसा खाया । बहुत स्वादिष्ट था। लोग विभिन्न प्रकार की दुकानों पर खरीदारी में व्यस्त थे । उच्च कोटि की महंगी वस्तुएँ जो यहाँ के शोरूम में उपलब्ध हैं ,,भारत में आसानी से हर जगह नहीं मिल पातीं। हर बजट की कुछ न कुछ चीजें यहाँ मिल ही जाएंगी।
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*राम-झूला*
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*राम-झूला* से लेकर परमार्थ निकेतन गंगा घाट तक एक प्रकार से मेला लगा हुआ था । राम-झूला का अपना अलग आकर्षण रहा। झूला संभवत इसलिए कहा गया क्योंकि बीच में कोई भी स्तंभ (पिलर) नदी में पड़े हुए नहीं थे। राम झूला नदी के मध्य में केवल झूल रहा है। इस झूलने के कारण इसका नाम झूला पड़ा । राम-झूला पर कोलतार की पक्की सड़क बनी हुई है । इसके बाद भी यह झूला चलते समय यात्रियों के कंपन से झूलता हुआ स्पष्ट प्रतीत होता है । कोलतार की सड़क पर भी स्थान-स्थान पर दरारें पड़ गई हैं । भीड़ इतनी है कि संपूर्ण झूला-पथ यात्रियों से भरा रहता है। ऐसे में स्कूटर-बाइक जब निकलते हैं,तब पैदल-यात्री बेचारे यही सोचते रह जाते हैं कि स्कूटर से कैसे बचा जाए ?
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रिवर-राफ्टिंग का आनंद
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*रिवर-राफ्टिंग* का आनंद हमने सत्रह अप्रैल को दोपहर से पहले लिया । नदी पर नौका-विहार तो सैकड़ों-हजारों वर्षों से चला आ रहा है किंतु रिवर-राफ्टिंग बीसवीं सदी के आखिर का खेल है । इसमें नाव पर बैठकर नदी के जोखिम का आनंद लिया जाता है । एक प्रकार से यूँ कहिए कि “आ बैल मुझे मार”। यात्री जानबूझकर नदी के उन स्थानों से होकर गुजरते हैं जहाँ नाव पलटने का खतरा होता है । जहाँ नदी की ऊँची-ऊँची लहरें नाव पर सवार व्यक्तियों को भिगो देती हैं । जहाँ लहरों के परस्पर टकराने से ऐसे विक्षोभ उत्पन्न होते हैं जो किसी को भी असमंजस में डाल सकते हैं। ऐसे समय में खिलाड़ियों का अर्थात नाव पर सवार व्यक्तियों का आत्मविश्वास ,धैर्य तथा खतरों से जीतने का उनका मनोबल ही काम आता है । हर नाव प्लास्टिक की बनी होती है । हमारे होटल “लेमन ट्री” की बालकनी से जब भी देखो ,दिन भर 4 – 5 नावें रिवर राफ्टिंग करती हुई जाती दिख जाती थीं। इससे इस खेल की व्यापक लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है। इसमें नाव पर आराम से बैठने की कोई सीट नहीं होती अपितु सजगता-पूर्वक पतवार हाथ में लेकर हर खतरे से जूझने के लिए खिलाड़ी को तैयार रहना होता है।
जब हमारी रिवर राफ्टिंग आरंभ हुई ,नाविक ने हमें कुछ दिशा निर्देश दिए । नाव पर हम छह लोग थे ।तीन हमारे परिवार के और तीन पटना-मूल की कोई फैमिली थी । नाविक का कहना यही था कि खतरों के बारे में मत सोचो। खतरों से कैसे जूझा जाता है ,बस इसके बारे में समझ लो। फॉरवर्ड पतवार को चलाना ,बैकवर्ड पतवार को चलाना समझाया । होल्ड कहते हैं पतवार को रोक देना और रस्सी को कस के पकड़ लेना । यह कुछ बातें थीं जो हमारे नाविक में हमें समझाईं। सामूहिक रूप से नाव को आगे अथवा पीछे की दिशा में खेने में यह निर्देश बहुत काम आए। जब ऊँची लहरों से हमारा सामना हुआ ,तब हम रोमांचित तो हुए लेकिन नाव पलटने का तथा इस कारण नदी में गिर पड़ने का अवसर एक बार भी नहीं आया । ऐसा नाविक के द्वारा नाव की रस्सी पकड़ने के शीघ्रता से दिए गए निर्देशों का पालन करने के कारण ही हो पाया। रिवर राफ्टिंग में नाविक के निर्देश और खिलाड़ियों द्वारा उन निर्देशों को समझते हुए उसका तत्काल अनुपालन विशेष महत्व रखता है । सबसे बड़ी बात योग्यता अथवा शक्ति की नहीं है। महत्वपूर्ण बात धैर्य तथा बुद्धि-चातुर्य बनाए रखने की होती है । हमारे समूह में सभी छह लोग उत्साह और आत्मविश्वास से भरपूर थे। जोखिम का आनंद लेने के उत्सुक थे। एक क्षण के लिए भी पराजित अथवा परेशान होने का भाव किसी में भी नहीं आया ।
रिवर राफ्टिंग में हमने नौका-विहार का भी अद्भुत आनंद उठाया । होटल के कमरे से नीचे झाँक कर नदी को देखना एक अलग अनुभव होता है लेकिन नदी की गहराइयों में नाव पर बैठकर आड़े-तिरछे लहरदार घुमावों से होते हुए किनारे पर खड़े हुए ऊँचे पहाड़ों का आनंद उठाना एक अलग ही रोमांचकारी अनुभव होता है । अगर यह रिवर राफ्टिंग का खेल न हो और वास्तव में नौका-विहार करते समय किसी की नौका लहरों के जाल में फँस जाए ,तब उसे चिंता जरूर होगी। लेकिन क्योंकि हमें पता था कि यह केवल एक खेल है जिसमें खतरा भी है किंतु इन सब के बावजूद भी यह एक आनंददायक खेल है ।
शाम को हमने अपना काफी समय ” *नीम -बीच* ” पर गुजारा । विदेशी पर्यटकों के आने के कारण कुछ शब्द प्रचलन में आने लगे हैं । “बीच” भी उनमें से ही है । बच्चों ने रेत पर खिलौनों की मदद से घर-घरौंदे बनाए और बिगाड़े । उन अबोध बालकों को क्या पता कि वह सृष्टि के सबसे गूढ़तम रहस्य को अपने क्रियाकलापों से प्रदर्शित कर रहे हैं ।
ऋषिकेश संतों और महात्माओं की नगरी है । कदम-कदम पर मंदिर और आश्रम हैं। इनके भवनों के मुख्य द्वार-दीवार पर भारत की महान आध्यात्मिक परंपरा के कीर्ति-स्तंभ चित्र के द्वारा यहाँ दर्शाए हुए मिल गए ।
अंत में दो कुंडलियाँ प्रस्तुत हैं:-
*ऋषिकेश 【कुंडलिया】*
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गंगा के तट पर बसा ,मनमोहक ऋषिकेश
पर्वत पेड़ हरीतिमा , स्वच्छ वायु परिवेश
स्वच्छ वायु परिवेश ,दिव्य सौंदर्य लुभाता
पग-पग मिलते संत ,आरती जन-जन गाता
कहते रवि कविराय ,उच्चतम भाव तिरंगा
भूलो स्विट्जरलैंड , श्रेष्ठतम निर्मल गंगा
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*रिवर-राफ्टिंग 【कुंडलिया】*
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सीखो जा ऋषिकेश में ,रिवर-राफ्टिंग खेल
इसमें तन-बल से अधिक ,हुआ धैर्य का मेल
हुआ धैर्य का मेल ,लहर के जोखिम आते
खतरनाक कुछ मोड़ ,डरा भीतर से जाते
कहते रवि कविराय ,संयमी मन के दीखो
रखो आत्मविश्वास ,नियम नाविक से सीखो
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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