उसी के दम से कायम जहां है
. —-ग़ज़ल—-
1222–1222-122
खुदा मेरा बड़ा ही मेहरबां है
उसी के दम से क़ायम ये जहाँ है
चले आओ मेरे हमराज़ बनकर
मेरे दिल का अभी खाली मकां है
तनफ़्फुर ग़म ज़ुदाई के सिवा अब
न दिल में और बाकी कुछ निशां है
छुपाओगे मुहब्बत किस तरह तुम
निगाहों से तुम्हारे सब अयाँ है
उसी ने कर दिया ग़म के हवाले
जो कहता था वो मेरा पासबाँ है
कहूँ क्या हाल दिल का दोस्तों मैं
बड़ी ही ग़मज़दा ये दास्ताँ है
जिसे मैं ढूँढ़ता हूँ कब से “प्रीतम”
खुदारा तू बता दे वो कहाँ है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)