उनकी जब ये ज़ेह्न बुराई कर बैठा
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ग़ज़ल
उनकी जब ये ज़ेह्न बुराई कर बैठा
ये दिल मेरा हाथापाई कर बैठा
अच्छा बनना था अच्छाई कर बैठा
मैं रिश्तों में ख़ुद ही खाई कर बैठा
रोज़ मुझे वो बे-इज़्ज़त करता है अब
मैं उसकी इज़्ज़त-अफ़जाई कर बैठा
मुझ में लोग उतरने से कतराते हैं
क्यों ख़ुद में इतनी गहराई कर बैठा
आस्तीन में ख़ंजर रखने की लत में
मैं अपनी ही ज़ख़्मी कलाई कर बैठा
इक ही दीया रौशन था, मैं उसे बुझा कर
और ज़ियादा ही तन्हाई कर बैठा
मेरी दुनिया को करके बे-रंग ‘अनीस’
वो हरजाई दस्त-ए-हिनाई¹ कर बैठा
– – अनीस शाह ‘अनीस ‘
1. मेंहदी से सजे हाथ