*इंद्र घबराने लगे (मुक्तक)*
इंद्र घबराने लगे (मुक्तक)
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सज्जन जहाँ पर भी गए ,खतरा नजर आने लगे
जैसे ऋषियों के तपों से, इन्द्र घबराने लगे
खोटे सिक्कों ने रचे षड्यंत्र यह बाजार में
जो खरे सिक्के थे उनको लोग ठुकराने लगे
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रचयिता: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा,
रामपुर (उ.प्र.)मोबाइल 9997615451