Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Oct 2022 · 4 min read

आभार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ…. रामपुर नगर….

आभार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ…. रामपुर नगर….
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
यह मेरे लिए अत्यंत गौरव का क्षण था जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, रामपुर नगर ने अपने प्रतिष्ठित विजयदशमी उत्सव 8 अक्टूबर 2019 के लिए अध्यक्ष के नाते मुझे आमंत्रित किया। संघ के स्वयंसेवकों के मध्य इस उत्सव की एक अपनी विशिष्ट ऐतिहासिक परंपरा है। कारण यह कि संघ की स्थापना दशहरा 1925 ईस्वी को हुई थी । अतः विजयदशमी उत्सव एक प्रकार से संघ का स्थापना दिवस भी है।
आइए रामपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गौरवशाली इतिहास का स्मरण करते हैं । पूज्य पिता जी श्री रामप्रकाश सर्राफ बताते थे कि रामपुर में संघ की स्थापना श्री भाऊराव देवरस ने 1946 की गर्मियों में आकर की थी । रामपुर के पुराने निवासी श्री रामरूप गुप्त जी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र रहे थे और वहाँ वह सबसे पहले संघ के संपर्क में आने वाले रामपुर के व्यक्ति थे ।राम रूप जी से पिताजी की बहुत घनिष्ठ मित्रता थी तथा मैं उनको ताऊजी कह कर बुलाता था। रामरूप जी ने रामपुर में संघ का कार्यभार प्रमुखता से श्री बृजराज शरण वकील साहब के अनासक्त हाथों में सौंपा। उस समय के पुराने स्वयंसेवकों की लंबी श्रंखला में कुछ नाम सर्वश्री सीताराम जी भाई साहब, महेंद्र प्रसाद जी गुप्त, भोला नाथ जी गुप्त तथा उनके भाई रामअवतार जी गुप्त , ब्रजपाल सरन जी तथा सर्वोपरि कैलाश चंद्र जी जो बाद में आचार्य बृहस्पति के नाम से संगीत के विद्वान के रूप में विख्यात हुए आदि थे। इनमें से 9 अक्टूबर 1925 को पूज्य पिताजी का जन्म हुआ था तथा उनकी मित्र मंडली के उपरोक्त सदस्य आयु में उनसे दो-तीन साल आगे पीछे ही रहे होंगे । आचार्य बृहस्पति मार्गदर्शक की भूमिका में रहे । नवयुवकों की यह टोली रामपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में राष्ट्रीय विचारधारा को पुष्ट करने का कार्य कर रही थी ।
1946 के आसपास पूज्य पिताजी ने संघ के वृंदावन शिविर में भाग लिया था, जो 1 महीने का था लेकिन उनका प्रवास 15 दिन का ही रह पाया था । एक प्रसंग इलाहाबाद शिविर में भाग लेने का भी है जिसमें उनके साथ सीताराम जी भाई साहब तथा रामअवतार गुप्तजी (श्री केशव गुप्त जी के पिताजी ) भी थे । संघ का एक शिविर जनवरी 1956 में राजघाट में लगा था ,जो चंदौसी के निकट है । इसमें भी पूज्य पिताजी भाग लेने के लिए गए थे तथा बीच में ही श्री सुंदर लाल जी की तबीयत खराब होने के कारण वापस लौट आए थे।
गोरखपुर के बाद सरस्वती शिशु मंदिर श्रृंखला का विस्तार करने का मन रामपुर ने बनाया । रामपुर में मोतीराम जी की धर्मशाला में सरस्वती शिशु मंदिर खोला जाए, इसके संबंध में पूज्य पिताजी ने मोतीराम जी के सुपुत्र लक्ष्मीनारायण जी से बात करके यह स्थान शिशु मंदिर के लिए प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की । लक्ष्मीनारायण जी पूज्य पिताजी के कुनबे के व्यक्ति थे । वंश परंपरा के अनुरूप उदारमना तथा निःस्वार्थ वृत्ति के थे । उनके प्रयासों से उनके स्थान का सर्वोत्तम सदुपयोग उत्तर प्रदेश में दूसरे शिशु मंदिर के स्थापना के कार्य में हुआ।
जब 1956 में श्री सुंदरलाल जी की मृत्यु हुई ,तब उसके 5 दिन बाद अपने हृदय की वेदना अभिव्यक्त करने के लिए पूज्य पिताजी को संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी से बेहतर कोई व्यक्ति नजर नहीं आया । उन्होंने अपनी वेदना एक पत्र में गुरु जी को लिखी और उस वेदना को शांत करने के लिए गुरु जी ने जो उत्तर दिया, वह अपने आप में एक संगठन के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति द्वारा नितांत निचले स्तर पर स्थित कार्यकर्ता के साथ किस प्रकार का आत्मीय , पारिवारिक बल्कि कहना चाहिए कि हृदय की डोर से बँधा हुआ रिश्ता होना चाहिए, यह गुरु जी के पत्र में झलकता है ।
बाद में जब रामपुर में जनसंघ की स्थापना 1951 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने की तो स्वाभाविक रूप से पूज्य पिताजी संघ के साथ साथ जनसंघ में भी समर्पित हो गए ।1962 में रामरूप गुप्त जी के साथ मिलकर श्री शांति शरण जी को चुनाव में खड़ा करने में दोनों ही महानुभावों की प्रमुख भूमिका रही । इस प्रकार 1946 से राष्ट्रीय प्रवृत्तियों को स्थापित करने के लिए संघ के तपस्वी महानुभावों ने जो तप किया, उन सबको प्रणाम करने का अवसर विजयदशमी उत्सव के माध्यम से मिलता है।
1983 में अर्थात 36 वर्ष पूर्व मैंने भी संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार जी की एक संक्षिप्त जीवनी तैयार की थी। सौभाग्य से यह उस समय सहकारी युग( साप्ताहिक ) में प्रकाशित भी हुई । मेरी योजना उसे 24 पृष्ठ की एक छोटी-सी पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की थी । लेकिन,दूसरी कहानियाँ कविताएं आदि तो पुस्तकाकार प्रकाशित हुईं मगर यह कार्य टलता चला गया। प्रकाशन बहुत बार जब सुनिश्चित समय आता है ,तभी होता है।

Language: Hindi
82 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

Books from Ravi Prakash

You may also like:
तू रुक ना पायेगा ।
तू रुक ना पायेगा ।
Buddha Prakash
बुलेट ट्रेन की तरह है, सुपर फास्ट सब यार।
बुलेट ट्रेन की तरह है, सुपर फास्ट सब यार।
सत्य कुमार प्रेमी
हवाएँ
हवाएँ
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
Propose Day
Propose Day
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मैं और दर्पण
मैं और दर्पण
Seema gupta,Alwar
यह रात कट जाए
यह रात कट जाए
Shivkumar Bilagrami
■ ठीक नहीं आसार
■ ठीक नहीं आसार
*Author प्रणय प्रभात*
गीत
गीत
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
फीके फीके रंग हैं, फीकी फ़ाग फुहार।
फीके फीके रंग हैं, फीकी फ़ाग फुहार।
सूर्यकांत द्विवेदी
मुस्कुराते रहो
मुस्कुराते रहो
Basant Bhagwan Roy
गंवई गांव के गोठ
गंवई गांव के गोठ
Vijay kannauje
कोई उम्मीद
कोई उम्मीद
Dr fauzia Naseem shad
हमनवां जब साथ
हमनवां जब साथ
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
तुम्हें अकेले चलना होगा
तुम्हें अकेले चलना होगा
अभिषेक पाण्डेय ‘अभि ’
लगा ले कोई भी रंग हमसें छुपने को
लगा ले कोई भी रंग हमसें छुपने को
Sonu sugandh
"आज का विचार"
Radhakishan Mundhra
"भीमसार"
Dushyant Kumar
रात के अंधेरे के निकलते ही मशहूर हो जाऊंगा मैं,
रात के अंधेरे के निकलते ही मशहूर हो जाऊंगा मैं,
कवि दीपक बवेजा
प्रकृति एवं मानव
प्रकृति एवं मानव
नन्दलाल सुथार "राही"
फटमारा (कुंडलिया)*
फटमारा (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
Ajj purani sadak se mulakat hui,
Ajj purani sadak se mulakat hui,
Sakshi Tripathi
भ्रम नेता का
भ्रम नेता का
Sanjay
मैं उड़ सकती
मैं उड़ सकती
Surya Barman
आए तो थे प्रकृति की गोद में ,
आए तो थे प्रकृति की गोद में ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
52 बुद्धों का दिल
52 बुद्धों का दिल
Mr. Rajesh Lathwal Chirana
कोरा रंग
कोरा रंग
Manisha Manjari
तू होती तो
तू होती तो
Satish Srijan
पथ पर आगे
पथ पर आगे
surenderpal vaidya
रंग पंचमी
रंग पंचमी
जगदीश लववंशी
"मोमबत्ती"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...