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24 Feb 2017 · 1 min read

आदमी में गांव

किसी पुरानी किताब
के कई छुटे पन्ने धुमिल
स्याही के आखरों जैसे
क्ई गांव बुड़ा गये और
कुछ पलायन में खो गये,
व निगल गयी आधुनिकता !
सही में विकास की राह
कई बार बेमानी होती है
सीधे सरल लोग जो हैं
गुम  जाते व खो जाते हैं
और कौन न रिझेगा सपने सरीखी
बातों से, गर पढ लिख जायेंगें !
पुराने बुढे गांव भी एकबार
पहल कर जायेंगें, यदि
भुल से कदम बढ जाते
उन पगडंडियों में कभी
तो टुटे बचे अवशेष आज
कई कहानियां कहती हैं !
कहीं मौन सहमति में लोग
अनायास आज को गले
लगाने के हौसले बस
चाहे अनचाहे ही सही
अब बुलंद कर रहे हैं
मन के लिबास बदल रहे हैं !
बस बातों में गावं कभी
राजनीति ,कभी  धर्म  में,
बजट पालिसी के पन्नों
व विकास की भाषा से
गरीब की पीठ में चने भुनते
बड़े ही फल फूल रहे हैं !
जहां मिट्टी कुरेदो उधर एक
नया उगता नेता,और पद हैं,
पदों की  चाह राह में वादे 
फिर विकास टटोलता आदम
ऐसे ही गांव में कहीं आदमी
आदमी में गांव शायद बचा है !!!!!!

नीलम  “नील” Date 7.10.16

Language: Hindi
Tag: कविता
277 Views
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