Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Jun 2016 · 3 min read

आत्मकथा

न ये कविता है न ये कहानी है ,
ये सच्चाई है कुछ साल पुरानी है ,,
मै कन्जूश हू ,
बहुत मक्खी चूस हू ,,
कल तक गरीब था ,
अपनों के करीब था ,,
आज मै मजबूर हू ,
अपनों से दूर हू ,,
मेहनत से उठा हु ,
लगन से जुटा हु ,,
एक एक रुपय को तरशा हू ,
कल तक चाक़ू था आज फरशा हू ,,
मंदिर में माथा हमेशा झुकाता हू ,
अपनी कहानी मै तुमको सुनाता हू ,,
अपनों ने मारा था ,
गाँव में आवारा था ,,
घर से भगा था ,
स्टेसन में जगा था ,,
इस अनजान शहर में ,
मै भटकू दोपहर में ,,
न कोई सहारा था ,
न कोई हमारा था ,,
दिनभर भटकता था ,
बोलने में अटकता था ,,
बारवी फेल था ,
ये ऐसा खेल था ,,
जो समझ में न आता था ,,
एक दो दिन कुछ भी न खाता था ,,
एक दिन मै भूखा सड़क में पड़ा था ,
सिकोटी डारेक्टर अकड़ के खड़ा था ,,
उसने फिर पूछा बेटा कैसे पड़े हो ,
ऊपर से नीचे तक पतझड़ सा झड़े हो ,,
मैंने फिर अपनी कहानी सुनाई ,
तुरतै बिठाकर वो गाड़ी घुमाई ,,
ले जाकर पटका सनराईस टावर ,
बोला की देखो यहाँ तुम्हारा है पावर ,,
गेट में तुम बैठो निगरानी भी करना ,
मोटर चलाके तुम पानी भी भरना ,,
इतने में धीरे से बर्दी निकाला ,
जल्दी पहन ले तू मेरे प्यारे लाला ,,
डर के मै जल्दी से सैल्ट को लटकाया ,
इतनी बड़ी थी नीचे से पैन्ट को हटाया ,,
हुई सुबह तो एक सेठ हम पे भड़का ,
पता नहीं कहा से आया ये लड़का ,,
सोला साल का छोरा न मूछे न दाढ़ी ,
डारेक्टर भी साले ऐसे रखते अनाड़ी ,.
सोया था नीचे भला चलाया न गाड़ी ,
हमें रोते देख समझाई उसकी लाड़ी ,,
फोन लगा के डारेक्टर को चमकाया ,
किसी तरह से वो दो दिन धकाया ,,
तीसरे दिन बोला तू ले अपने पैसे ,
कुछ भी तू कर या रह चाहे जैसे ,,
मैंने कहा अंकल अपना कोई नहीं है ,
दश दिन से ये आँखे भी सोई नहीं है ,,
मैंने कसम खा के घर से हु निकला ,
चाहे मुझे जाना पड़े पूना या शिमला ,,
इतना वो सुनकर उसका दिल पिघला ,,
डाकूमेन्ट में क्या है जल्दी से दिखला ,,
दश वी की अन्कशूची मै उसको दिखाया ,
हमें पैसे कमाने के तरीके सिखाया ,,
रात में मै ड्यूटी सिकोटी की करता ,
दिन में ऑफिश की नोकरी भी करता ,,
ऐसे ही दोस्तों मै एक साल कमाया ,
मार्केट में अपनी एक इमेज बनाया ,,
पैसे जुड़े थे अड़तालिस हजार ,
उगली घुमाता उनमे बार बार ,,
सपना था मेरा खरीदेगे कार ,
मित्रों अब होगा ये सपना साकार ,,
गया घर जब अपने सब मिलने को आये ,
बैठ कर फिर उनको सच्चाई बतायें ,,
अब मै बिलकुल बदल चुका था ,
घर में केवल दश दिन रुका था ,,
साथ में अपने तीनो भाई को लाया ,
इंदौर में रहकर मै उनको पढ़ाया ,,
भाई ने मेरा प्राइवेट फॉर्म डाला ,
मै बारवी पास हुआ कालेज कर डाला ,,
दुसरे भाई का एअर फ़ोर्स में है जॉब ,
अपना भी थोड़ा सा पूरा हुआ ख्वाब ,,
तीसरे का विजनेस चौथा आर्मी में है ,
हम चारों भाई मिलजुल ख़ुशी में है ,,
फ़िलहाल सि.ए.ऑफिस में असिस्टैंट हू ,
कई साल से एक जगह परमानेन्ट हू ,,
दोस्तों मै अपनी मजाक उड़ा रहा हू ,
लगे हुए दामन में दाग छुड़ा रहा हू ,,
कवि आशीष तिवारी जुगनू
इंदौर म.प्र .
09200573071 / 08871887126

Language: Hindi
484 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मीत की प्रतीक्षा -
मीत की प्रतीक्षा -
Seema Garg
परेशानियों से न घबराना
परेशानियों से न घबराना
Vandna Thakur
दिल
दिल
Dr Archana Gupta
सम्भाला था
सम्भाला था
भरत कुमार सोलंकी
वक्त से पहले..
वक्त से पहले..
Harminder Kaur
ज्यादा अच्छा होना भी गुनाह है
ज्यादा अच्छा होना भी गुनाह है
Jogendar singh
दुख में दुश्मन सहानुभूति जताने अथवा दोस्त होने का स्वांग भी
दुख में दुश्मन सहानुभूति जताने अथवा दोस्त होने का स्वांग भी
Dr MusafiR BaithA
चन्द्रमा
चन्द्रमा
Dinesh Kumar Gangwar
*अदरक (बाल कविता)*
*अदरक (बाल कविता)*
Ravi Prakash
"मैं तुम्हारा रहा"
Lohit Tamta
तबीयत मचल गई
तबीयत मचल गई
Surinder blackpen
■ जनादेश की ऐसी-तैसी...
■ जनादेश की ऐसी-तैसी...
*प्रणय प्रभात*
सत्य
सत्य
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
"शोर"
Dr. Kishan tandon kranti
बुंदेली दोहा-बखेड़ा
बुंदेली दोहा-बखेड़ा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
झूठा तन का आवरण,
झूठा तन का आवरण,
sushil sarna
********* हो गया चाँद बासी ********
********* हो गया चाँद बासी ********
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
कहाँ जाऊँ....?
कहाँ जाऊँ....?
Kanchan Khanna
राम-वन्दना
राम-वन्दना
विजय कुमार नामदेव
वक्त
वक्त
Astuti Kumari
" न जाने क्या है जीवन में "
Chunnu Lal Gupta
बढ़ी शय है मुहब्बत
बढ़ी शय है मुहब्बत
shabina. Naaz
दान
दान
Neeraj Agarwal
मुक्तक
मुक्तक
Neelofar Khan
कितना तन्हा
कितना तन्हा
Dr fauzia Naseem shad
What consumes your mind controls your life
What consumes your mind controls your life
पूर्वार्थ
सीता स्वयंवर, सीता सजी स्वयंवर में देख माताएं मन हर्षित हो गई री
सीता स्वयंवर, सीता सजी स्वयंवर में देख माताएं मन हर्षित हो गई री
Dr.sima
गिरता है धीरे धीरे इंसान
गिरता है धीरे धीरे इंसान
Sanjay ' शून्य'
जलाओ प्यार के दीपक खिलाओ फूल चाहत के
जलाओ प्यार के दीपक खिलाओ फूल चाहत के
आर.एस. 'प्रीतम'
2439.पूर्णिका
2439.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
Loading...