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8 Mar 2019 · 1 min read

आज की नारी

आज की नारी

घूँघट त्याग नज़र से नज़र मिलाने लगी है,
नारी शक्ति अपनी ताकत दिखाने लगी है !!

घुट-घुट के जीना बीते दिनों की बात हुई,
खुलकर जिंदगी का लुफ्त उठाने लगी है!!

छोड़ दिया है उसने चारदीवारी में कैद रहना,
देहरी के बहार भी अब कदम जमाने लगी है!!

सीख लिया है कतरे हुए परों से भी उड़ना
परचम आकाश में भी अब लहराने लगी है !!

कल तक रही जो बनकर नाज़ुक कली
आज खुशबू चारो और बिखराने लगी है !!

छोड़कर दकियानूसी रीती रिवाज़ो को
नई दुनिया में, कदम बढ़ाने लगी है !!

जल, थल, वायु, कुछ नहीं रहा अब अछूता
दर दिशा में ताकत अपनी आज़माने लगी है !!

अब डर नहीं लगता इन्हे मानुषी भेडियो से
बन सिहंनी, गर्जना से अपनी डराने लगी है!!

क्या हिमाकत किसी रावण की, उड़ा ले जाए
बहरूपियों को सबक खुद ही सिखाने लगी है !!

भूल जाए दुनियाँ अब चौसर के दाँव पे लगाना
अब धर चंडी का रूप आत्मरक्षा पाने लगी है !!

लक्ष्मी,विद्या,सरस्वती, संग नौ दुर्गा रूप लिए
वक़्त की नज़ाकत से कर्म अपना निभाने लगी है !!

है आज भी वही ममता, प्रेम और त्याग की मूरत
ये न समझना “धर्म” अपने से मुँह चुराने लगी है !!

स्वरचित: डी के निवातिया

1 Like · 2 Comments · 240 Views
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