आंख में बेबस आंसू
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सरहद आंख की ,
कोरों की, तोड़ चले
आखिर आंसू बोल पड़े
बहुत अरसे से जमी थी
बर्फ इन किनोरों पर
जरा सी हमदर्दी मिली
पिघले सब्र छोड़ चले
डा राजीव “सागरी”
सरहद आंख की ,
कोरों की, तोड़ चले
आखिर आंसू बोल पड़े
बहुत अरसे से जमी थी
बर्फ इन किनोरों पर
जरा सी हमदर्दी मिली
पिघले सब्र छोड़ चले
डा राजीव “सागरी”