“आँसू”
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“आँसू”
जिनमें सलीका है गम समझने का,
उन्हीं के रोने में आँसू नज़र आई है।
उन्हीं लफ्जों के अश्क बनते हैं,
जो जुबां से बयां न हो पाई है।
“आँसू”
जिनमें सलीका है गम समझने का,
उन्हीं के रोने में आँसू नज़र आई है।
उन्हीं लफ्जों के अश्क बनते हैं,
जो जुबां से बयां न हो पाई है।