आँखों पर ऐनक चढ़ा है, और बुद्धि कुंद है।
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आँखों पर ऐनक चढ़ा है, और बुद्धि कुंद है।
बोध पर पर्दा पड़ा है द्वार सारे बंद है।
किस तरफ किसी ओर जाएँ, कौन सोचे क्यों भला~
लोभ के वश में हुए सब, ज्ञान की गति मन्द है।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’