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14 Feb 2017 · 1 min read

अस्तित्त्व

अस्तित्व

तुम्हें हक़ है कि
चुनो तुम
रिश्तों की भीड़ से
स्वयं के अस्तित्व को,
समेटो
रसोई के मसाला डिब्बों में
बंद पड़े अरमानों या
बिस्तर की सिलवटों तक सीमित
आत्मसम्मान को,
सँवारो
बेतरतीब बालों से बिखरे स्वप्नों को
ताकि सुनिश्चित कर सको
उनका दायरा,
कि नींद की प्रतीक्षा में
न हो बारम्बार निर्वासन
स्वयं के स्वप्नों का..
तुम्हें हक़ है
कि आवाज़ दो
अपनी शब्दविहीन कविता को
बिखरे शब्दों को समेटकर,
तुम अब तक रही
अँधेरे में नेगेटिव तस्वीर बनकर
हाँ,तुम्हें पूर्ण हक़ है कि
भर सको
मर्जी के बेहिसाब रंग
अपने अस्तित्व की तस्वीर में..

अल्पना नागर

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 1 Comment · 218 Views
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