अवध से राम जाते हैं,
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अवध से राम जाते है,अवध से राम जाते है।
दया सुखधाम जाते है,अवध से राम जाते है।।
सजी दुल्हन सी अबधनगरी
अब राजा राम बन जायेंगे
पता किसको था क्या बोलो,
कि जोगी बन के वन जायेंगे,
कौशल्या से विदा लेते,
सुमित्रा से विदा लेते ।
झुका शीश केकई के,
पद,रज शीश लगा लेते,
मिलेंगे चौदह वर्षों बाद,
ये कह भगवान जाते है।।
अवध से राम जाते हैं,अवध से राम जाते हैं।
दया सुखधाम जाते हैं,अवध से राम जाते हैं
शिशु रोते,वृद्ध रोते,
कि खेवनहार जाते है।
जहां आनंद रहता था,
वहां तूफान आते हैं।।
बिलखते है पशु_पक्षी,
कि तारणहार जाते हैं ।
लखन सीता को संग लेकर
करुणा निधान जाते हैं।।
अवध से राम जाते हैं,अवध से राम जाते हैं।
दया सुखधाम जाते है,अवध से राम जाते हैं।।
नयन से बह रहे आंसू,
न अब आराम पाएंगे ।
विरह में राम की दशरथ,
प्राण अपने गवायेंगे ।
बिछड़ के राम से दसरथ,
न एकपल चैन पाएंगे ।।
लौटा लो रथ सुमंत जल्दी,
कि तन से प्राण जाते है ।।
अवध से राम जाते है,अवध से राम जाते है।
दया सुखधाम जाते है,अवध से राम जाते है।।
अनूप अम्बर,फर्रुखाबाद