अब कहाँ मौत से मैं डरता हूँ
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तेरी यादों से जब गुज़रता हूँ
मैं न जीता हूँ और न मरता हूँ
तेरे ग़म ने वो हाल कर डाला
रात-दिन सिर्फ़ आह भरता हूँ
ज़िन्दगी तू ये चाहे जब ले ले
अब कहाँ मौत से मैं डरता हूँ
जब भी रिसते हैं ज़ख़्म इस दिल के
इश्क़ में और भी निखरता हूँ
तेरी यादों के लगते जब पत्थर
आइने की तरह बिखरता हूँ
बेरुख़ी के चलाये जा खंज़र
ज़ख़्म खाकर ही मैं सँवरता हूँ
ज़ख़्म इतने दिये मुझे प्रीतम
नाम से ही तेरे सिहरता हूँ
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)