अपनी है, फिर भी पराई है बेटियां
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अपनी है, फिर भी पराई है बेटियां
घर में चहचहाती है बेटियां, पर कभी शोर नहीं करती।
आंगन में खिलखिलाती है बेटियां, पर कभी रुठा नहीं करती।
हजारों ख्वाहिशें होती है, पर कभी इजहार नहीं करती।
जागीर होती है मां बाप की, पर कभी उनके नाम वसीयत नहीं होती।
रहमत, बरकत लाती है बेटियां, पर उनकी कोई कीमत नहीं होती।
संस्कारों, जिम्मेदारियों का बोझ ढोती हैं बेटियां, पर कभी उफ़ तक नहीं करती।
पापा की परी, मां का गुमान होती है बेटियां।
पर परिवार की स्थाई सदस्यता की हकदार नहीं होती बेटियां।।
#seematuhaina